अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२
गिरें तो फिर सम्हलना ही हमारी कामयाबी है !
सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है !
नही ये कामयाबी है कि मंजिल पा लिया हमने
सही राहों पे चलना ही हमारी कामयाबी है !
मुहब्बत में तुम्हारी हार ही हरबार पाए, पर
मुहब्बत तुमसे करना ही हमारी कामयाबी है !
भले ही मौत आए, पर सहेंगे अब नही जालिम
मरे तो लड़ के मरना ही हमारी कामयाबी है !
तुम्हारे प्यार में जो गम, खुशी हमको मिली जानम
गज़ल में उसको भरना ही हमारी कामयाबी है !
-पीयूष भारत
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
क्या कहने भाई जी खूबसूरत ग़ज़ल सुन्दर अशआर दाद कुबूल फरमाएं.
मरे तो लड़ के मरना ही हमारी कामयाबी है !....शानदार है जनाब ..! बेजोड़ :)
शुक्रिया, आदरणीय अनुराग जी !
आदरणीय गिरिराज जी, बहुत बहुत आभार आपका !
तहे दिल से शुक्रिया, आ. संदीप भाई जी !
बहुत बहुत धन्यवाद, आ. अन्नपूर्णा जी !
निश्चित ही लक्ष्य प्राप्त होगा ! शुभकामनाये
आदरणीय पीयूष भाई , बहुत बेहतरीन गज़ल कही है आपने , बहुत बधाई !!
क्या बात है बेहतरीन साहब
दिली दाद हाजिर हैं
क्या खूब गजल कही आ0 पीयूष जी , आपको बहुत बधाई ।
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