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सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है (गज़ल)

अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने

सही   राहों  पे  चलना   ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

मुहब्बत   में   तुम्हारी   हार   ही  हरबार पाए, पर

मुहब्बत  तुमसे  करना  ही  हमारी   कामयाबी  है !

 

भले   ही  मौत  आए, पर सहेंगे  अब  नही जालिम

मरे  तो  लड़  के  मरना ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

तुम्हारे प्यार में जो गम, खुशी  हमको  मिली  जानम

गज़ल  में  उसको   भरना  ही  हमारी  कामयाबी है !

 

-पीयूष भारत

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 25, 2013 at 10:27am

क्या कहने भाई जी खूबसूरत ग़ज़ल सुन्दर अशआर दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Saarthi Baidyanath on September 24, 2013 at 10:49pm

मरे  तो  लड़  के  मरना ही  हमारी  कामयाबी  है !....शानदार है जनाब ..! बेजोड़ :)

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 6:18pm

शुक्रिया, आदरणीय अनुराग जी !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 6:18pm

आदरणीय गिरिराज जी, बहुत बहुत आभार आपका !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 6:17pm

तहे दिल से शुक्रिया, आ. संदीप भाई जी !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 6:17pm

बहुत बहुत धन्यवाद, आ. अन्नपूर्णा जी !

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:38pm

निश्चित ही लक्ष्य प्राप्त होगा ! शुभकामनाये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 24, 2013 at 5:03pm

आदरणीय पीयूष भाई , बहुत बेहतरीन गज़ल कही है आपने , बहुत बधाई !!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:20pm

क्या बात है बेहतरीन साहब 

दिली दाद हाजिर हैं 

Comment by annapurna bajpai on September 24, 2013 at 3:52pm

क्या खूब गजल कही आ0 पीयूष जी , आपको बहुत बधाई ।  

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