काम बेहद मामूली था पर बड़े बाबू फाइल पर कुंडली मारे बैठे थे । मित्रों ने बताया कि बिना हजार-डेढ़ हजार का चढ़ावा लिए वो काम करने वाले नही हैं । गुप्ताजी यह सुन कर चुप रह गये ।
"बड़े बाबू एक छोटा सा काम आपके पास पेंडिंग है, यदि कर देते तो बड़ी मेहरबानी होती"
"हाँ-हाँ, गुप्ताजी हो जाएगा, थोड़ा खर्च-वर्च कर दीजिएगा", बड़े बाबू बगैर लाग-लपेट बोल उठे ।
"देखिए बड़े बाबू मैं खर्च करने की स्थिति मे तो नही हूँ, हां, काम कर दीजिये.. मुँह ज़रूर मीठा करा दूँगा", गुप्ता जी नम्रता से बोले ।
"चलिये, ठीक है, मिठाई ही सही, जाइए कल शाम में मिलिए काम हो जाएगा"
दूसरे दिन शाम में सचमुच काम हो गया था । संबंधित कागज़ात गुप्ताजी के हाथों में मिल भी गये । बड़े बाबू और बड़े बाबू के एक सहकर्मी मिठाई खाने के लिए संग हो लिए ।
"जो मिठाई खाना है, बोल दीजिये, बड़े बाबू"
"राजेश बाबू इस दुकान की पिस्ता-कतली बहुत ही मशहूर है, वही ले लीजिए । वैसे भी मुझे शुगर का प्रॉब्लम है..", बड़े बाबू ने कहा ।
जी जी, कोई बात नहीं.. छोटूऽऽऽऽ... जरा दो जगह सौ-सौ ग्राम और एक जगह पचास ग्राम पिस्ता कतली लगा देना.."
गुप्ताजी ने छोटा प्लेट खुद के लिए रखा और दोनो बड़े प्लेट बड़े बाबू और उनके सहयोगी की ओर बढ़ा दिये ।
बड़े बाबू कतली की तारीफ़ करते हुए आवाज़ लगाई, "छोटूऽऽऽ ज़रा एक जगह एक किलो और एक जगह आधा किलो पिस्ता-कतली पैक कर देना.."
"आठ सौ रुपये किलो के हिसाब से डेढ़ किलो पैक और एक पाव नास्ते में"
"ऐसा करो, ये लो दो सौ नास्ते वाला.. और बाकी जिसने अर्डर दिया है उसीसे ले लो"
"यह क्या गुप्ताजी ?", बड़े बाबू का मुँह मीठा खाने के बावज़ूद एकदम से तीता हो गया था ।
"बड़े बाबू, बात मिठाई खिलाने की हुई थी, पैक कराने की नही........"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
सटीक-
बधाई आदरणीय-
यह खूब रही .... लेकिन हम आगे भी काम पड़ सकता है सोचकर इन लोगों के सामने नतमस्तक हुए रहते हैं तो ऐसे में साहस को सलाम ....बढ़िया सन्देश आदरणीय गणेश जी
सत्य लिखा है ... समाज में ऐसे कदाचारियों को उनका चेहरा दिखाती रचना ..सच है आज हर जगह आम और सीधा आदमी ऐसे घूसखोरों से त्रस्त है गुप्ता जी ने साहस दिखाया पर सब कहाँ ऐसा कर पाते हैं ..आगे फिर कोई फाइल अटकेगी तो ..इस डर से ... इस रोग का समाधान और स्थायी समाधान ज़रूरी है ! कथा ताकतवर है और तेवरदार भी बहुत बधाई स्वीकारें श्री बागी जी !!
बहुत सुंदर गणेश जी .......... आपने न सिर्फ़ व्यंग किया है , एक विकल्प भी दिया है .... दिल से बधाई .
बहुत अच्छी लगी कहानी ... आज के समय में ऐसे ही कदम उठाने की ज़रूरत है घूसखोरों से निबटने के लिए !
आदरणीय गणेश भाई , ऐसे घूँस खोरों से निपटने का बहुत सुन्दर रास्ता दिया आपने !! वाह !! बहुत बहुत बधाई !!
वाह! बाबू तो, नो बॉल पर रन आउट हो गये....... बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी
आदरणीय बागी जी " जैसे को तैसा " मिलना ही चाहिए । बधाई लघु कथा के लिए। काश इसे सरकारी तंत्र के सभी अधिकारी और बाबू पढ़ पाते।
आभार कवि राज बुन्देली जी ।
प्रतिक्रिया हेतु आभार प्रिय वीनस भाई जी |
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