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रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए 
खुदा  का चाँद  भी फिर लाजबाव हो जाए 

.

तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम 
बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए 

.
तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन 
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो जाए 

.

उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ 
तेरा चेहरा गर  कोई किताब हो जाए 

.
हुस्नवाले संवर सकती है शायरी मेरी 
कभी हमराह मेरे जो तेरा शबाब हो जाए  

 

-सचिन देव -
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 1:38pm

आपका अंदाज अच्छा लगा। भावपूर्ण ग़्ज़ल के लिए बधाई

Comment by Saarthi Baidyanath on September 25, 2013 at 1:22pm

बहुत बढ़िया :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 25, 2013 at 1:06pm

सचिन भाई कृपया ग़ज़ल की बहर से अवगत करायें ताकि कुछ कह सकूँ ?

Comment by Sachin Dev on September 25, 2013 at 1:03pm

आपका हार्दिक आभार रविकर जी ......

Comment by Sachin Dev on September 25, 2013 at 1:02pm

भाई अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी ... विचार देने के लिए हार्दिक आभार आपका 

Comment by Sachin Dev on September 25, 2013 at 1:01pm

परवीन जी आपकी बधाई सर माथे पर ..... आपका बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिए ! 

Comment by Sachin Dev on September 25, 2013 at 1:00pm

डॉ अनुराग सैनी जी... प्रशंशा के लिए हार्दिक आभार आपका ! 

Comment by Sachin Dev on September 25, 2013 at 12:59pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.... प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार आपका 

Comment by रविकर on September 25, 2013 at 11:34am

बढ़िया गजल-
शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 24, 2013 at 9:34pm

 एक अच्छी  गज़ल के लिये बधाई, सचिन भाई !!

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