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"रमल मुसम्मन महजूफ"
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जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है
इक निवाले के सिवा अब आर्ज़ू क्या है
ख़ास जोरोजर समझते हैं जहाँ खालिस
या खुदा उनके लिए इक आबरू क्या है
नफ़रतों का जो जहर यूँ बारहा पीते
अम्न क्या है और उनकी गुफ़्तगू क्या है
फितरतें ताने जनी ही है सदा जिनकी
बाद क्या उनकी नजर में रूबरू क्या है
कीमते फ़न की नजर में ही नहीं जिनकी
गीत या उनके लिए ऐ नज्म तू क्या है
जो नहीं रखते अक़ीदत या अदब दिल में
वो समझते ही नहीं यारब गुरु क्या है
टीसते दिल से टपकता तो बहुत देखा
जो न टपका सरहदों पे वो लहू क्या है
लाख सागर हैं यहाँ ऐ "राज" पीने को
पर जिसे लब छू न पायें वो सबू क्या है
**********************************
जोर ओ जर =शक्ति और धन
फ़न =कला
बारहा =हमेशा , अनेक बार ,बहुदा
ख़ालिस =केवल
सबू =मदिरा का मटका
सागर =पैमाने
अकीदत =श्रद्धा,आस्था
अदब =तहजीब
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय वीनस जी मतले की त्रुटी मैं समझ गई इसको सोच कर दुरुस्त करती हूँ
अभिनव अरुण जी आप जो कह रहे हैं वो सच है किन्तु क्या कुछ नया सीखना गलत है लोग पहले दोहे सीखते हैं ,फिर सवैया भी सीखने की चेष्टा करते हैं ,बिना सीखे फन कहाँ से आएगा ,सौभाग्य से हमारे बीच एक ग़ज़ल के विद्द्वान हैं वीनस जी उनको ये कष्ट तो दे ही सकते हैं न ? हाँ क्लिष्ट शब्दों का कम प्रयोग हो वो मैं मानती हूँ आपकी बात सही है ,इसलिए इस बार इतने क्लिष्ट शब्द नहीं लिए
फिर अर्थ भी लिख दिया है |आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीय वीनस जी अभी बहुत है ग़ज़ल की पेचीदगियां सीखने के लिए आप की ग़ज़ल पर उपस्थिति मुझे बहुत सुकून दे रही है ,मतले की त्रुटी को आप और भी स्पष्ट कर दें तो मैं सुधार करूँ ,क्या ईतादोष है ? या कुछ और ?,मेरे साथ औरों को भी ज्ञान मिले,रही बात
आपने कहा है ---
कई अल्फाज़ ऐसे बंधे गए हैं जो अरूज़ इ हवाले से किसी एतबार से सही नहीं ठहरते
किसी सूरत में इस तरह नहीं बाँधा जा सकता है जैसे आपने बाँध लिया है ....
जैसे -
जोर ओ जर
कद्र-ओ- फ़न
घुंघरू
जख्म -ए -दिल-----वास्तव में कुछ पुराने ग़ज़ल करों की ग़ज़लों में इस तरह शब्द को विच्छेद कर दिखाया गया था जिससे मैंने सोचा शायद यह जरूरी है ,आपके कहने का मतलब क्या यही है की जैसे इसको लिखना चाहिए था जख्मेदिल ?कृपया स्पष्ट त करें तो मेरे लिए आसान होगा ,वीनस जी इस ग़ज़ल पर आप थोडा और समय दें दें तो मैं आपकी शुक्रगुजार होऊँगी ,इसको किस तरह से दुरुस्त कर सकती हूँ ?प्लीज हेल्प मी.
सलीम शेख जी ग़ज़ल पसंद करने का बहुत- बहुत शुक्रिया
आ. राजेश जी ...हम नयी भाषा ..नए गढ़ाव क्यों ढूंढें ..परेशान हों ..जिस बोल बनाव में रोज्मरा की बात होती है उसी में ग़ज़ल कहें यकीनन उसमे अगर हम हैं हमारा दिल है तो फन भी होगा और सफलता भी मिलेगी !!
आदरणीया मतला में काफियाबंदिश को स्पष्ट कर दें अथवा हिन्दुस्तानी ज़बान के अनुसार आगे के कवाफी सवालों के घेरे में आ जायेंगे
एक बेहद पेचीदा बहर को चुन कर उसमें कठिन जमीन को बाँध देना कभी कभी ग़ज़ल को बाँध कर रख देता है ...
अगर आपने एक दीर्घ मात्रा बढ़ा ली होती तो बहुत कुछ सध जाता
जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है
इक निवाले के सिवा आरजू क्या है
जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है
इक निवाले के सिवा अब आरजू क्या है
उर्दू के फसील अल्फाज से सजी इस ग़ज़ल में राइज अल्फाज़ को गलत तवज़्ज़ुन के साथ पेश करने के आपके फैसले पर नज़रे सानी फरमाने की इल्तिजा है
कई अल्फाज़ ऐसे बंधे गए हैं जो अरूज़ इ हवाले से किसी एतबार से सही नहीं ठहरते
किसी सूरत में इस तरह नहीं बाँधा जा सकता है जैसे आपने बाँध लिया है ....
जैसे -
जोर ओ जर
कद्र-ओ- फ़न
घुंघरू
जख्म -ए -दिल
राज लाली शर्मा जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ.
चन्द्र शेखर पाण्डेय जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभारी हूँ.
जिंदगी तू ही बता जुस्तजू क्या है
इक निवाले के सिवा आरजू क्या है
!! WAH kamaal kr di aapne is mtle ke sath !!
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,wah!
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