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ग़ज़ल .... मयकशी मयकशी नहीं लगती !

ग़ज़ल
....

मयकशी मयकशी नहीं लगती !
रौशनी रौशनी नहीं लगती !!
.....
अब इबादत में दिल नहीं लगता !
बन्दगी बन्दगी नहीं लगती !!
......
हर तरफ भीड़ और मैं तनहा!
बेबसी बेबसी नहीं लगती !!
...
दिल में रखते हैं वोह तो दिल कितने !
आशिकी आशिकी नहीं लगती !!
...
गुफ़्तगू आप से करें कैसे !
आपको तो  कमी नहीं लगती
....
हैं खफा वोह अगर खफा हम है !
दोसती दोसती नहीं लगती !!
....
चाँद तारों के साथ चलता हूँ !
तो सफर में कमी नहीं लगती !!
...
साँस लेता हूँ अब हवा के लिए ,
ख़ुदकुशी ख़ुदकुशी नहीं लगती !!
....


राज लाली शर्मा (बटाला)

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1057

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Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:25pm

आभारी हूँ आदरणीय अन्नापुर्ण जी

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:24pm

आभारी हूँ अरुण भाई , सीखता हूँ रोज़ कुछ न कुछ और ख़ुशी होती है !
आपका शुक्रगुजार हूँ , ऐसे ही बताते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये !

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:22pm

आभारी हूँ शकूर जी !!

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:22pm

आभारी हूँ वीनस जी !! आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है !!
अच्छा लगता है , आप ग़ज़ल को एक नयी दिशा
प्रदान क्र रहे हैं !!

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:21pm

आभारी हूँ अरुण भाई जी !! अच्छा लगा जो आपको पसंद आई !

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:20pm

आभारी हूँ आदर्णीय गीतिका जी

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:20pm

आभारी हूँ आदर्णीय राजेश कुमारी जी

Comment by राज लाली बटाला on September 26, 2013 at 6:19pm

आभारी हूँ गिरिराज जी !! हिम्मत बड़ाने के लिए शुक्रिया !!

Comment by annapurna bajpai on September 26, 2013 at 1:08pm

बहुत ही खूबसूरत गजल कही आपने , बहुत बधाई आपको आ0 लाली जी । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 26, 2013 at 11:55am

बेहद शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आया दिली दाद कुबूल फरमाएं.

गुफ़्तगू हम से अब नहीं होगी ,
आपको भी कमी नहीं लगती !! .. इस शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष है शायद आप भी देख लीजियेगा.

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