**जल से हम कल बनायेंगे**
मदमस्त पवन, घनघोर घटा,
छाई बदली, सूरज को हटा ।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा,
तपती धरा पे कतरा-कतरा ।
सौंधी-सौंधी महक लिए,
मिट्टी जल संग बहने लगी,
नाले से बनकर नदी जल वो,
मन ही मन बूँद कहने लगी ।
सागर से उठी बादल मैं बनी,
संग पवन के मैं इठला के उड़ी ,
प्यासी धरती की तपन को देख,
बेबस ही बस मैं बरस पड़ी ।
अब बहती हूँ धारा बनकर,
नदियों में कल-कल-कल-कल कर,
निर्झर से बहती मैं झर-झर ,
लेती हूँ मैं सबका मन हर ।
मैं सुन्दरता इस धरती की,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति की,
मुझ बिन सूना संसार लगे ,
मुझ बिन कोई इक पग न चले ।
तो प्रण करो संकल्प ये लो ,
वारि न व्यर्थ बहायेंगे ,
बूँद-बूँद संचित कर के,
जल से हम कल बनायेंगे ।
जल से हम कल बनायेंगे ।
जितेन्द्र *जीत*
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।
सादर,
विजय निकोर
बहुत सुंदर रचना बधाई आपको , आदरणीय जितेंद्र जी ।
आ० जितेन्द्र जीत जी
बहुत सुन्दर रचना है आपकी .. जल के कितने स्वरुप , बूंदों के बोल, और जल संचय की सीख समेटती रचना के इए हार्दिक बधाई .
वैसे इस रचना में गेयता अप्रतिम हो सकती है यदि सभी पंक्तियों को १६-१६ मात्रा पर साधा जाए ..
मदमस्त पवन, घनघोर घटा, ....१६
छाई बदली, सूरज सिमटा ।.......१६
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा, ...१६
तपती भू पर कतरा-कतरा । .......१६
सौंधी-सौंधी महकी महकी , ....१६
मिट्टी जल घुल बहती बहती,.....१६
इस तरह १६ की मात्रा पर पूरे गीत को साध जाइए फिर देखिये ..!!
शुभेच्छाएं
वाह वा !! क्याबात है !! अगर जल से कल नही बनाया तो कल से जल बनाना पडेगा !! आदरणीय बधाई !!
आदरणीय जीतेंद्र जी वाह क्या कहने जल ही जीवन है बेहद सुन्दर रचना रची है आपने जल का होना कितना लाभकारी है दर्शाया है आपने सुन्दर संदेशात्मक प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें.
बहुत ही सुन्दर रचना जीत जी बहुत बधाई//
मैं सुन्दरता इस धरती की,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति की,
मुझ बिन सूना संसार लगे ,
मुझ बिन कोई इक पग न चले । ...सुन्दर रचना जीत जी बहुत बधाई इस भावपूर्ण मनोरम प्रस्तुति के लिए
अपनी रचना के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश दिया आप ने .. बधाई आप को
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