सत्कर्मों से जो सदा ,खेता है पतवार ,
समझो वो नर हो गया ,भवसागर से पार !!१
राम नाम ही सत्य है ,कहते वेद पुराण!
रमा राम के नाम जो ,उसका ही कल्याण !!२
ज्ञान चक्षु को खोलकर ,ऐसा दीपक बार !
जिससे घटता दंभ तम ,छटते मलिन विचार !!३
श्रद्धानत हो पूजते ,मन में दृढ़ विश्वास !
ऐसे नर के हिय सदा ,शिव शम्भू का वास !!४
सब धर्मों का सार यह ,सुनिये मेरी बात!
फल भी वैसा ही मिले ,जैसी करनी तात !!५
सहज नहीं दिखते कभी,सबको ही भगवान् !
वही मनुज होता सफल ,जिसको जीवन ज्ञान !!६
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय हेमंत जी//सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई वैद्य नाथ जी //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई ब्रिजेश जी //सादर
बहुत ही सुन्दर! भाव कथ्य के हिसाब से उच्च श्रेणी के दोहे! आपको हार्दिक बधाई राम भाई!
क्या कहने ....
सत्कर्मों से जो सदा ,खेता है पतवार ,
समझो वो नर हो गया ,भवसागर से पार
अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी //सादर
प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी
गहन गंभीर कथ्य को दोहों में प्रस्तुत करने के लिए बधाई
राम नाम ही सत्य है ,कहते वेद पुराण!
रमा राम के नाम जो ,उसका ही कल्याण !!२...............यहाँ ही को हो करें तो?
ज्ञान चक्षु को खोलकर ,ऐसा दीपक बार ! ....... इसका अर्थ क्या है, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा
इस सुन्दर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय राम शिरो मणी भाई , सुदर दोहों की रचना के लिये बधाई !! `
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