सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१
प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२
प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३
रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४
अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को भूल॥५
मुझसे कहने आ गयी ,अपने दिल की बात !
लिए चाँदनी साथ में ,तारों की बारात !!६
उनके आते ही यहाँ,उड़ने लगी सुगंध !
धीरे धीरे टूटते, मर्यादा के बन्ध।!७
व्यथित ह्रदय अब ढूंढता,वही पत्र दो चार !
जिसमे तुमने था लिखा,तुमको मुझसे प्यार !!८
साँसों में मधु रागिनी, अधरों पर शुभ गीत।
मधुर कंठ की स्वामिनी, बना रही मन मीत॥९
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी ///सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय निकोर जी ///सादर
बहुत सुन्दर मनमोहक दोहे। बधाई, आदरणीय राम जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी //सादर
वाह वाह वाह शानदार श्रंगारिक दोहे मजा आ गया पढ़ के अतिसुन्दर बहुत बहुत बधाई प्रिय राम पाठक जी.
बहुत बहुत आभार आदरणीय रविकर जी //सादर
अपना अनुमोदन मिला आदरणीया प्राची जी ,मेरा लिखना सफल हुआ बहुत बहुत आभार //सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी //सादर
हार्दिक आभार आदरणीय भाई संदीप जी //सादर
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