For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओढ़ चुनरिया स्याह सी, उतरी जब ये रात!

गुपचुप सी वह कर रही, धरती से क्या बात!!

 

तारों का झुरमुट सजा, चाँद खड़ा मुस्काय!

इठलाये जब चाँदनी, मन-उपवन खिल जाय!!

 

धवल रंग की रोशनी, जगत रही है सींच!

परछाईं सब हैं छिपी, जा सरपत के बीच!!

 

हौले-हौले बह रही, देखो मंद बयार!

रोम-रोम पुलकित हुआ, कण-कण में है प्यार!!

 

देख छटा पिय-चाँद की, हुलसत मनस-चकोर!

बार-बार मन मिलन को, उमगत है उस ओर!!

 

बागों में चंपा खिला, भ्रमर रहे मंडराय!

रूप निहारे दूर से, पास नहीं वह जाय!!

 

चकई से होकर जुदा, चकवा करे विलाप!

इत-उत खोजत वह फिरे, बची न आस-मिलाप!!

                  - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:04pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:04pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 3, 2013 at 6:03pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by वेदिका on October 3, 2013 at 5:03pm

बहुत ही सुंदर बन पड़ा है प्रकृति का मानवीकरण|

एक एक दोहा विशिष्ट अर्थ और सुंदरता लिए है|

बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 3, 2013 at 4:51pm

बहुत सुन्दर दोहे प्रस्तुत किये है आदरणीय बृजेश जी 

हर दोहा एक विशिष्ट शब्द चित्र उकेर रहा है.. बहुत सुन्दर 

हार्दिक बधाई हर दोहे पर स्वीकार करें 

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 3:53pm

माहौल को ज़िन्दा कर दिया है आपने ! वाह !
सारे बिम्ब आवश्यकतानुसार मानवीय संवेदनाओं को जीते हुए हैं. संप्रेषणीयता सतत प्रयास और संलग्नता का समानुपाती होती है.
हृदय से बधाई स्वीकारें, भाई बृजेशजी.
 

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 11:22pm

आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2013 at 10:57pm

आ0 बृजेश भार्इ जी, सुन्दर दोहे। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 9:13pm

आदरणीय महिमा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 9:13pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service