जीवन में पहली बार कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास किया है. आप सबका मार्गदर्शन प्रार्थनीय है.
अम्बे तेरी वंदना, करता हूँ दिन-रात
मिल जाए मुझको जगह, चरणों में हे मात
चरणों में हे मात, सदा तेरे गुण गाऊँ
चरण-कमल-रज मात, नित्य ही शीश लगाऊँ
अर्पित हैं मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे
शब्दों को दो अर्थ, मात मेरी हे अम्बे
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- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय बागी जी, आपका हार्दिक आभार! आपका सुझाव मुझे अधिक उचित लग रहा है. तदनुसार पंक्तियों को सही करने का प्रयास करता हूँ.
सादर!
आदरणीय ब्रिजेश भाई जी, कुण्डलिया पर आपका प्रयास बढ़िया लगा, अंतिम दो पक्तियों में मुझे तनिक सुधार की आवश्यकता प्रतीत हो रही है
अर्पित हैं मन-प्राण, दया करिए जगदम्बे
शब्दों को दो अर्थ, मात मेरी हे अम्बे
करिए / दीजिये अथवा करो / दो
बधाई इस प्रस्तुति पर ।
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