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माँ !! ( लघु कविता )

माँ !!

 

नेह ममता

लाड़  दुलार

अविस्मरण रूप

स्नेह की गागर

छलकाती ।

 

आँखों मे असंख्य

अबूझ स्वप्न

स्नेह सिक्त

जल धारा बरसाती ।

होती ऐसी माँ !!!..................अन्नपूर्णा बाजपेई 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 6:50pm

आदरणीय भण्डारी जी आपका हार्दिक आभार । टिप्पणी के रूप मे अपना स्नेह बनाए रखें । 

Comment by Meena Pathak on October 4, 2013 at 6:42pm

होती ऐसी माँ !!...बहुत सुन्दर कविता | बधाई आप को 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2013 at 6:31pm

स्नेह सिक्त

जल धारा बरसाती ।

होती ऐसी माँ !!!

हां सचमुच होती है ऐसी ही माँ, अच्छी कविता हुई है, बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 6:16pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , माँ को परिभाषित करती आपकी लघु कविता बहुत अच्छी लगी !!! माँ तो बस माँ ही हो सकती है!!! बधाई !!

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