For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता -------सुबह सुहानी लगती है

छाने लगी सूरज की लाली ,
गाने लगी कोयलिया काली ,
छूमंतर होने लगा अन्धकार ,
मीठी निंद्रा से जागा संसार !
मंद हवा के शीतल झोंके ,
तरोताजा कर जाते है ,
और पत्तो पे बिखरे ओस के मोती ,
गायब कहीं हो जाते है !
सूरज की पहली किरण से ,
अंग अंग मस्त हो जाता है ,
और निंद्रा पूरी कर रात की ,
 आलस कहीं खो जाता है ,
सुबह के सुंदर नज़ारे बहुत सुहाने लगते है ,
कली कली इठलाती है ,
पौधों के हर एक डाल पे ,
फूल सुहाने खिलते है !
भोंरे की मीठी गुंजन से ,
उपवन इठलाने लगता है ,
मुर्गे की एक बांग से ,
जग उठ जाने लगता है !
सूरज की लाल लालिमा ,
जीवन को रंगीन बनाती है ,
अन्धकार दूर कर ये सुबह ,
उम्मीदों के चिराग जलाती है !
प्रात काल की ये बेला हर एक के मन को भाती है ,
छोड़ के पीछे ना उम्मीदी को नया विश्वास जगाती है ,
जागो , उठो और आगे बढ़ो मीठे सपनो में मत खोओं
मधुर  भोर का आनंद ले लो मेरे प्यारे अब मत सोओं !
-----------------------रचना -----------------------डॉ. अनुराग सैनी --------------------------------------
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 10317

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:30pm

वाह आदरणीय अनुराग जी बहुत खूबसूरत रचना, सुबह का खूबसूरत चित्रण, इस रचना के लिये बधाई स्वीकार करें 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 8:41pm

सभी विद्य जानो का हार्दिक आभार !

Comment by बृजेश नीरज on October 5, 2013 at 7:51pm

अच्छे भाव हैं! आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

आपसे निवेदन है कि आप कविता के शिल्प पर भी ध्यान दीजिये. गद्यात्मकता से बचने का प्रयास करें.

सादर!

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 11:42pm

वाह !! आदरणीय बहुत सुंदर रचना बहुत बधाई आपको । 

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:46pm

बेहद सुंदर रचना है आदरणीय अनुराग जी.... यद्दपि आजकल की भोर में भी वह पहले सी ताज़गी नहीं है.... विशेषकर शहरों में तो बिल्कुल नहीं.... लेकिन यदि गाँवों की ओर रुख़ करें तो ऐसी ही होती है सुबह..... सुबह की नैसर्गिक छटा का सुंदर वर्णन किया है आपने... बधाई हो..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service