ये कैसी है चम् चम् चम् चम् ,
क्यों बहक रहा है मन,
टूटकर घटा से बरसे पानी,
हो गयी है रुत मस्तानी,
चारो और छायी हरियाली ,
जंगल मनाने लगा दिवाली ,
ऐसे बहे ठंडी बयार,
सपनो से हो जाए प्यार,
तन से टपके सुगन्धित पसीना ,
लो आया सावन का मस्त महीना !
तन की बजने लगी सितार ,
आँखें देखे सपने हजार,
अपने प्रियतम का करे इंतज़ार ,
जैसे कोई दुल्हन मस्तानी ,
कैसे खुद को काबू कर पाए ,
कैसे अपने दिल को समझाए ,
निंदिया यूँ बैरन हो जाए ,
कामनाये दिन रात जगाये ,
फिर भी उम्मीदे ऐसे चमके ,
जैसे चमके कोई नगीना ,
लो आया सावन का मस्त महीना !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अनुराग जी सुंदर भावात्मक प्रस्तुति , बधाई आपको ।
बहुत बहुत बधाई स्वीकारें सुन्दर रचना हेतु
सादर
आदरणीय अनुराग भाई जी रचना पर आपका प्रयास बहुत ही अच्छा है भाव भी अच्छे पिरोये हैं किन्तु कसावट की कमी है. खैर प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
आप सभी ने इस रचना को पसंद किया ! आभार सभी का , उम्मीद है की अपने लेखन कौशल का विकास कर सकूँगा !
अच्छे भाव हैं आदरणीय अनुराग जी बधाई आपको
रचना अच्छी हुई है किन्तु और कसने का प्रयास करें आदरणीय सैनी साहब, बधाई और शुभकामनाएं ।
आदरणीय सैनी जी , सावन के महीने का बेहद खूबसूरत चित्रण । बधाई !
आदरणीय अनुराग जी , सुंदर रचना,हार्दिक बधाई
बढ़िया भाव-
जीवंत कविता -
आभार आदरणीय-
आदरणीय अनुराग भाई , सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई !!
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