किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !
जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !
समझ नही आता अर्थ किसी को मेरा !
कैसी ये परिभाषा बना कर चल पड़ी !
पा लूँ अर्श को एक ही छलांग में !
कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी !
चंद दाद पाकर तसल्ली मिलती नही !
शोहरतों का प्यासा बनाकर चल पड़ी !
बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !
मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी !
किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !
जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बहुत अच्छी कविता हुई है ग़ज़ल के समीप है थोड़े श्रम से ग़ज़ल में परिवर्तित हो सकती है यदि आप चाहें. खैर इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें
बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !
मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी !... आपकी कामना अवश्य पूर्ण होगी आदरणीय अनुराग जी.... सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई....
पा लूँ अर्श को एक ही छलांग में !
कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी !
बहुत खूब कहा आपने हार्दिक बधाई आपको !
आप सभी ने ग़ज़ल को पसंद किया , लेखन सफल हुआ ! आभार सभी का !
किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !
जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !.......बहुत सुंदर
किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !
जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !
समझ नही आता अर्थ किसी को मेरा !
कैसी ये परिभाषा बना कर चल पड़ी !
...सुन्दर , सार्थक - सकारात्मक कामना को स्वर मिले हैं इस उम्दा ग़ज़ल में ,आदरणीय डॉ अनुराग सैनी साहब हार्दिक बधाई !!
वाह !!! एक से बढ़कर एक अश'आर, गज़ल ने मुग्ध कर दिया. आदरणीय अनुराग जी, बधाइयाँ...........
चंद दाद पाकर तसल्ली मिलती नही !
शोहरतों का प्यासा बनाकर चल पड़ी !
बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !
मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी ! .............. बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ , बधाई आपको ।
आदरणीय अनुराग भाई , बहुत सुन्दर रचना की है आपने !!! बधाई !!!
पा लूँ अर्श को एक ही छलांग में !
कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी ! वाह भाई !! दाद कुबूल करें !!
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