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जिंदगी मुझे तमाशा बनाकर चल पड़ी --------

किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !

जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !

समझ नही आता अर्थ किसी को मेरा !

कैसी ये परिभाषा बना कर चल पड़ी !

पा लूँ  अर्श को एक ही छलांग में !

कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी !

चंद दाद पाकर तसल्ली मिलती नही !

शोहरतों का प्यासा बनाकर चल पड़ी !

बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !

मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी !

किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !

जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !

 

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

 

 

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Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 5:05pm

आदरणीय बहुत अच्छी कविता हुई है ग़ज़ल के समीप है थोड़े श्रम से ग़ज़ल में परिवर्तित हो सकती है यदि आप चाहें. खैर इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें

Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 3:09pm
महत्वाकांक्षाएं न हो तो फिर प्रतियोगी मन का निर्माण कैसे होगा और तब जिजीविषा के सामर्थ्य का निर्धारण कैसे होगा . लफ्जों के मायने जुबान बदलने से भी कभी-कभी खूबसूरत हो जाते हैं - जरा 'तमाशा 'को ब्रितानी जुबान में कहिए ' SHOW ' और शो-बाजी के पीछे ही तो आजकी दुनिया पागल है तो आपकी जिंदगी ने तो आपकी बेहतरी ही सोची .अनुरागजी ! आपकी यह रचना निश्चित ही आदर और सराहना के योग्य है ,अनन्य बधाई और इच्छित प्राप्त हो ,इसकी ढ़ेरों शुभकामनाएँ .
Comment by Sushil.Joshi on October 8, 2013 at 6:19am

बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !

मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी !... आपकी कामना अवश्य पूर्ण होगी आदरणीय अनुराग जी.... सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई....

Comment by Sachin Dev on October 7, 2013 at 5:41pm

पा लूँ  अर्श को एक ही छलांग में !

कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी !

बहुत खूब कहा आपने हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 5:35pm

आप सभी ने ग़ज़ल को पसंद किया , लेखन सफल हुआ ! आभार सभी का !

Comment by coontee mukerji on October 7, 2013 at 2:42pm

किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !

जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !.......बहुत सुंदर

Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 7:19am

किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !

जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !

समझ नही आता अर्थ किसी को मेरा !

कैसी ये परिभाषा बना कर चल पड़ी !

 

                   ...सुन्दर , सार्थक - सकारात्मक कामना को स्वर मिले हैं इस उम्दा ग़ज़ल में ,आदरणीय डॉ अनुराग सैनी साहब हार्दिक बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 12:52am

वाह !!! एक से बढ़कर एक अश'आर, गज़ल ने मुग्ध कर दिया. आदरणीय अनुराग जी, बधाइयाँ...........

Comment by annapurna bajpai on October 6, 2013 at 11:43pm

चंद दाद पाकर तसल्ली मिलती नही !

शोहरतों का प्यासा बनाकर चल पड़ी !

बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !

मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी ! .............. बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ , बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 10:22pm

आदरणीय अनुराग भाई , बहुत सुन्दर रचना की है आपने !!! बधाई !!!

पा लूँ  अर्श को एक ही छलांग में !

कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी ! वाह भाई !! दाद कुबूल करें !!

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