तलाश की महफिले तो तन्हाईयाँ मिली !
मुझको वफ़ा के बदले बेवफायियाँ मिली !
जिक्रे चाहत पर सदा लब खामोश ही रहे!
मुझको फिर क्यों इतनी रुश्वायियाँ मिली !
मेरे रकीबो को तो साथ उसका मिला !
मुझको उसकी सिर्फ परछाईयाँ मिली !
मनायेगा शायद मातम मेरी जुदाई का वो !
सुनने को उसके घर पे शहनाईयाँ मिली !
हुस्न की बदौलत फ़लक को पा गया है वो !
मुझको खामोश कब्र सी गहराईयाँ मिली !
उसकी तूफ़ान-ए- बेवफाई में मिट गया ‘सागर’!
और उसको पाक प्यार की पुरवाईयाँ मिली !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपकी अबतक इस अंदाज़ की कई प्रस्तुतियाँ आ चुकी हैं. इस रचना के भाव पक्ष के लिए धन्यवाद.
आपको आपकी रचनाओं पर उचित सलाहें भी मिलती रही हैं. आप अब उन सलाहों और सुझावों पर सार्थक ध्यान देना शुरू कीजिये. मंच पर होने का लाभ लें. शुभेच्छाएँ.
बहुत खूब भाई लगे रहिये ..... आप एक सही जगह पर मौजूद हैं ... खुद को दिशा दीजिए ,,, मंजिल मिलेगी
भावों को तरीके से संप्रेषित किया है आदरणीय अनुराग जी.... शिल्प का ज्ञान नहीं है तो चुप रहना ही बेहतर है लेकिन जिन जानकारों ने इस विषय में कहा है उनकी प्रतिक्रिया पर विचार अवश्य कीजिएगा.... बधाई इस कृति के लिए.....
आदरणीय अत्यंत सुन्दर प्रयास हुआ है पसंद आया कुछ कंटक त्रुटियाँ हैं कृपया देख लें इस प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
सुंदर भाव शब्द संयोजन भी काफी अच्छा है बहुत बधाई आपको ।
आदरणीय डॉ अनुराग जी आपकी रचना का भाव पक्ष मर्म स्पर्शी है अगर ग़ज़ल की शिल्प का साथ हो तो सोने पे सुहागा हो जायेगा, उम्मीद है जल्द आपकी ग़ज़ल भी पढ़ने को मिलेगी, इस रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
वाह कमाल का लेखन,,,,मुबारक हो,,,,,,,,
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , और आदरणीय अभिनव अरुण जी , आप बड़े भाई लोगो के उत्साह वर्धन से मेरा दिल बाग़ बाग़ हो जाता है ! रचना को पसंद करने के लिय आभार !
आदरणीय अनुराग भाई , बहुत भाव पूर्ण , बहुत सुन्दर बातें कही है आपने , सुन्दर रचना के लिये बधाई !!
उसकी तूफ़ान-ए- बेवफाई में मिट गया ‘सागर’!
और उसको पाक प्यार की पुरवाईयाँ मिली !
..सुन्दर कृति , हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ सैनी साहिब !!
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