वस्ल की उस रात को जमाने गुजर गए
शराब अभी भी वही है बस पैमाने बदल गए
शाम की गुल रंग हवा का कुछ ऐसा असर है
लबो पे सजे गम के सब तराने बदल गए
अब कौन संभालेगा कौन गले से लगाएगा
बचपन के वो सब दोस्त पुराने बदल गए
अब कौन यहाँ जबान और कुल है देखता
अब तो वो चोहद्दर वो राजघराने बदल गए
अब चढ़ते छप्पर को हाथ लगाने कोई नहीं आता
अब तो गाँव के वो सीधे लोग सयाने बदल गए
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुन्दर प्रस्तुति भाई जी,बहुत बधाई। अब तो गाँव के वो सीधे लोग सयाने बदल गए?????यहाँ कथन मुझे स्पस्ट हीं लगा///सादर
अब तथ्यों को शिल्पगत कथ्य दें. लेकिन आपसे ऐसा तो अबतक कई बार कहा जा चुका है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय अनुराग भाई जी प्रयास अच्छा है मतले में काफिया का निर्वाह नहीं किया है आपने यदि ग़ज़ल है तो काफिया दोष है कृपया पुनः देख लें.
बदलाव की आंधी को शायराना अंदाज में सुन्दर रचना के माध्यम से कहने के लिए बधाई डॉ अनुराग सैनी जी
आप सभी दोस्तों का शुक्रिया हौंसला अफजाई के लिए
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
बहुत सुन्दर रचना ... आदरणीय अनुराग जी
यकीनन अब गाँव में छप्पर उठाने कोई नहीं आता
और यदि आता भी है तो कहता है पहले मेरा उठाओ
अवधी के कवि म्रगेश जी के शब्दों में -----=- अब करो बतकही बंद बुढऊनू जुग बदला
सुंदर रचना !! आ0 डॉ अनुराग सैनी जी ।
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