छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए
जी ना सकेंगे अब हम किसी के लिए
तेरा मिलना बिछड़ना तो एक ख्वाब था
हम तो तरसते रहे तेरी हंसी के लिए
तेरी जुदाई से बढ़कर कोई गम नहीं
जख्म काफी है ये ही मेरी जिंदगी के लिए
जिसे खुदा माना उसी ने ना समझा अपना
अब कोई खुदा नहीं यहाँ बंदगी के लिए
बहुतो को क़त्ल होते देखा उसके हाथों तो जाना
बहुत नाम कमाया है उसने अपनी दरंदगी के लिए
फिर आज एक हसीं को क्या देखा तो यूँ लगा "सागर'
अब तक क्यों रो रहे थे हम एक गंदगी के लिए
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ अनुराग सैनी जी, ओ बी ओ सीखने सिखाने का मंच है और एक साहित्यिक वातावरण का निर्माण बहुत ही प्रयत्न पूर्वक किया गया है, आपकी टिप्पणियां और व्यवहार असंयत है जो इस साहित्यिक वातावरण के प्रतिकूल है ।
प्रबंधन द्वारा आपकी सदस्यता समाप्त करने का निर्णय लिया गया है, अनुरोध है कि इस मंच पर प्रस्तुत आप अपनी रचनाओं को सुरक्षित कर लें । अगले ४८ घंटों के पश्चात आपकी सदस्यता समाप्त कर दी जायेगी ।
सादर ।
काफी समय के बाद आज ऑनलाइन हुआ हूँ तो आपका सन्देश पढ़ा , अभी भी ये समझ से बहार की बात है की आप मेरी एक टिपण्णी के सन्देश को नहीं समझ पाए , क्या ये सच नही है की कोई भी रचनाकार अपनी सहूलियत के हिसाब से नियम बनाता है या नही ? नियम किसने बनाए और कैसे ?क्या नियमो का परिमार्जन आवश्यक नही है ? रचनाकार के दिल में लेखन की जो भूख होती है वो किसके लिए होती है ? पाठक को संतुष्टि और आनंद के साथ साथ उसके ज्ञान और अनुभव को बढाने में सहायक होती है और एक बात की लेखन में ग़ज़ल जो विधा है वो किसी एक थीम से बंधी हुयी नही है , महोदय आपको बुरा जरुर लगेगा मगर गौर जरुर फरमाईयेगा
सादर !
इस मंच पर एक विशेष वातावरण है और उसी वातावरण का यह नतीज़ा है कि कई नयी उम्र के उत्साही रचनाकार शिल्प आदि की समझ को ध्यान में रख कर इस वातावरण का हिस्सा बनने के लिए खिंचे चले आ रहे हैं. गंभीर सोचों और सतत अभ्यास में निरत कर्मठ सदस्यों से यह परिवार धनी होता जा रहा है.
इस वातावरण की पवित्रता के लिए प्रबन्धन द्वारा भी समय-समय पर कई कदम उठाने पड़ते हैं. ऐसा वातावरण किसी अतार्किक विचार और बकवास की भेंट चढ़ जाय, यह तो नये-नये हुए सदस्य को भी बर्दाश्त नहीं होगा. रचनाकर्म के नाम पर हुआ संप्रेषण शाब्दिक वमन नहीं होता, जबकि वमन कैसा भी हो कुछ न कुछ बाहर अवश्य आता है.
भाई अनुराग जी, संभवतः आप पेशे से शिक्षक हैं. नई पीढ़ी दिशा पाने की अपेक्षा लिए आपके पास आती है. आपके व्यवहार और विचारों में अतार्किकता या कैजुअलनेस अत्यंत दुखदायी ही नहीं चौंकाने वाला है.
इस मंच के प्रबन्धन से मैं सादर अनुरोध करूँगा कि आपकी प्रस्तुतियों पर केवल नज़र ही नहीं रखे बल्कि आपके इस मंच पर होने के उद्येश्य के प्रति भी सचेत और आग्रही हो.
सादर
आदरणीय अनुराग जी मैं इतना ही कहूँगा किसी भी रचना को शिल्प जाने बिना ग़ज़ल का नाम दे के न भ्रमित हों न भ्रमित करें, आपको एन्जॉय करना है बेझिझक कीजिये
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सबसे पहले तो धन्यवाद आपका मेरी हर रचना पर गौर करने के लिए
अब आपके सवालों के जवाब ये है की आपने उन्मुक्त अभिव्यक्ति के बारे में तो जाना ही होगा मैं लेखन को एन्जॉय करता हूँ नियमो के कड़े बन्धनों में बांधकर नहीं जिता! वो तूफ़ान ही क्या जिसको सीमाये बाँध सकें !
आप समझ रहे होंगे , लेखन किसी भी समाज का एक दर्पण है जिससे लोग सीखते है , मेरी हर रचना में एक सन्देश है समाज के लिए और मेरे लिए यही काफी है और जितनी सरलता से लोग समझ ले वही अच्छा है , आज भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना वक़्त नहीं है की वो नियम देखे लेखन के , नियम वो देखे जो सिर्फ साहित्य सेवा कर रहे है हम तो इसको सिर्फ एन्जॉय करेंगे !
सादर !
आदरणीय सौरभ जी से सहमत..........
दो प्रश्न हैं आपसे -
आप क्यों लिखते हैं ?
आप कुछ भी लिख कर उसे ग़ज़ल क्यों कहते हैं ?
सादर
आदरणीय गिरिराज जी के परामर्श पर आबश्यक रूप से ध्यान देवें .इस सुंदर प्रयास पर हार्दिक बधाई ..
फिर आज एक हसीं को क्या देखा तो यूँ लगा "सागर'
अब तक क्यों रो रहे थे हम एक गंदगी के लिए.. क्या शब्द का प्रयोग मुझे कुछ अटपटा लग रहा है ..हो सकता है मेरी समझ में कोई कमी हो ..सादर बधाई के साथ
आदरणीय अनुराग जी भाव के लिए सादर बधाई
आगे आदरणीय गिरिराज सर जी सहमत हूँ
सादर शुभकामनाएं
आदरणीय अनुराग भाई , अति सुन्दर भावों और विचारों के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
गज़ल के शिल्प के लिहाज़ से अभी कमियाँ है !!! आदरनीय आपसे अनुरोध है आप गज़ल की बातें और गज़ल की कक्षा का ज़रूर अध्ययन करें , आप ज़रूर कामयाब होंगे !!!!
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