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ग़ज़ल - सबकी नज़रों में सुनहरी भोर होनी चाहिए

ग़ज़ल –
2122 2122 2122 212

सबकी नज़रों में सुनहरी भोर होनी चाहिए,
रोज कोशिश रोशनी की ओर होनी चाहिए |

आसमां जा कर पतंगें भूल जाती हैं धरा,
आपके हाथों में उनकी डोर होनी चाहिए |

हो ग़ज़ल ऐसी कि, जैसे लुत्फ़ की परतें खुलें,
शाइरी गन्ने की मीठी पोर होनी चाहिए |

इश्क का जज़्बा इबादत से बड़ा हो जाएगा,
शर्त ये है आशिकी पुरजोर होनी चाहिए |

ज्ञान गीता का भले काम आएगा संग्राम में ,
कृष्ण की नज़रें मगर चितचोर होनी चाहिए |


तोड़ सकता है अदब सौ मुश्किलों के भी कवच,
हर कलम पैनी नुकीली ठोर होनी चाहिए |

कोई पश्चाताप की बातें करे तो देखना ,
आँख में उसकी ढलकती लोर होनी चाहिए |

जबकि आँखें बंद होने को हों मेरे रूबरू,
माँ तेरे आँचल की स्वर्णिम कोर होनी चाहिए |

देखना जब भी तो उसकी सीरतों को देखना,
ये न हो सूरत ही उसकी गोर होनी चाहिए |

 

 

* सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:26pm

वाह वाह वाह आदरणीय मुकम्मल कामयाब ग़ज़ल हरेक शेर सीधे दिल में उतर गया बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Tilak Raj Kapoor on October 6, 2013 at 8:55pm

बहुत खूबसूरत भाव उठाये हैं आपने। बधाई।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 6, 2013 at 8:28pm

आदरणीय अभिनव सर सादर

इक इक अशआर शानदार है आपकी इस ग़ज़ल का

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये आदरणीय

जिन्दाबाद

Comment by MAHIMA SHREE on October 6, 2013 at 6:35pm

हो ग़ज़ल ऐसी कि, जैसे लुत्फ़ की परतें खुलें,
शाइरी गन्ने की मीठी पोर होनी चाहिए ...... वाह वाह  बहुत खूब .

 

.तोड़ सकता है अदब सौ मुश्किलों के भी कवच,
हर कलम पैनी नुकीली ठोर होनी चाहिए |...... ये कही आपने मेरे मतलब की बात :))))

कमाल कमाल शानदार हर शेअर जिंदाबाद है ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय अभिनव जी

 

 

 

 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:44pm

इश्क का जज़्बा इबादत से बड़ा हो जाएगा,
शर्त ये है आशिकी पुरजोर होनी चाहिए |
आदरणीय भाई साहब क्या कहने ! दिल में उतर गया ये शेर 

पूरी ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया है 

हार्दिक बधाई 

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 2:25pm

आपका स्नेह हौसला और संबल देता है आ. श्री आशीष सलिल जी ,ह्रदय से आभार आपका !!

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 2:24pm

आदरणीय श्री सारथी जी शेर पसंद आये आपको कहना सफल हुआ आभार इस अनुमोदन के लिए !1

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 6, 2013 at 2:23pm

आसमां जा कर पतंगें भूल जाती हैं धरा,
आपके हाथों में उनकी डोर होनी चाहिए |

वाह, क्या बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय अभिनव जी !
बेहद मुश्किल काफिया लिया था और बढ़िया रूप से आपने निर्वहन किया !
हार्दिक बधाइयाँ !!

Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 2:19pm

आ. सरिता जी बहुत आभार आपका !

Comment by Saarthi Baidyanath on October 6, 2013 at 2:18pm

ग़ज़ल का मतला कमाल का है साहब ..

कुछ अशआर जिनके लिए दिली दाद हाज़िर है ...


हो ग़ज़ल ऐसी कि, जैसे लुत्फ़ की परतें खुलें,
शाइरी गन्ने की मीठी पोर होनी चाहिए .....आय हाय ...क्या लचक है !..जिंदाबाद 

इश्क का जज़्बा इबादत से बड़ा हो जाएगा,
शर्त ये है आशिकी पुरजोर होनी चाहिए |.....लाजवाब ...उम्दा ! :)

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