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बोलो किसको राम कहूँ मै ( गीत ) गिरिराज भंडारी

बोलो किसको राम कहूँ मै

*********************

सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !

 

धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे

अपना अपना बचा रहे है

चौक चौक मे दुर्योधन बन

चौसर द्युत सा सजा रहे है

 

भीष्म सदा ही चुप रहता है

बोलो किसको श्याम कहूँ मै

सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !!

 

हर राजा सर चढ़ा ज़ुर्म है

भूले सारे सत्य - मर्म हैं

मानव सेवा की क़समे लें

केवल लूटें , यही धर्म है

तुम भूखे थे, रोटी छीनी

फिर किसको बदनाम कहूँ मैं

सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !!!

सुबह हुई  पर डरी हुई है

धूप है लेकिन मरी हुई है

सारे मौसम  आतंकित हैं

सब में दहशत भरी हुई है

                                                                                    

सच कोने मे छिपा हुआ है

क्यों सच का संग्राम कहूँ मै

सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !!!!

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 13, 2013 at 3:48pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई ,  उत्साह वर्धन और गीत की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 13, 2013 at 3:46pm

आदरणीय देवेंद्र भाई , गीत की सराहना और हौसला अफज़ाई के लिये आपका आभारी हूँ !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 13, 2013 at 3:45pm

आदरणीय अजीत भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका आभार !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 13, 2013 at 3:44pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गीत की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये के लिये आपका हार्दिक  अभार !!!!!

Comment by Abhinav Arun on October 13, 2013 at 3:10pm

खूबसूरत ...मोहक ..सामयिक ..विचारक इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्री गिरिराज जी

Comment by Devendra Pandey on October 13, 2013 at 3:06pm
bahut saras poorna bhaav aur sath hi shilpkaari bhi badhaayee
Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 13, 2013 at 10:38am

अच्छी रचना आ० भाई गिरिराज जी !!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:22am

 

धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे

अपना अपना बचा रहे है

चौक चौक मे दुर्योधन बन

चौसर द्युत सा सजा रहे है

सच! बड़ी दुविधा है, आज के सामयिक सन्दर्भ में, किसे क्या कहें.. अनुपम रचना, हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी

कृपया ध्यान दे...

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