बोलो किसको राम कहूँ मै
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सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा सजा रहे है
भीष्म सदा ही चुप रहता है
बोलो किसको श्याम कहूँ मै
सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !!
हर राजा सर चढ़ा ज़ुर्म है
भूले सारे सत्य - मर्म हैं
मानव सेवा की क़समे लें
केवल लूटें , यही धर्म है
तुम भूखे थे, रोटी छीनी
फिर किसको बदनाम कहूँ मैं
सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !!!
सुबह हुई पर डरी हुई है
धूप है लेकिन मरी हुई है
सारे मौसम आतंकित हैं
सब में दहशत भरी हुई है
सच कोने मे छिपा हुआ है
क्यों सच का संग्राम कहूँ मै
सबके दिल मे रावण देखा, बोलो किसको राम कहूँ मै !!!!
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अभिनव अरुण भाई , उत्साह वर्धन और गीत की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!
आदरणीय देवेंद्र भाई , गीत की सराहना और हौसला अफज़ाई के लिये आपका आभारी हूँ !!!!
आदरणीय अजीत भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका आभार !!!!!
आदरणीय जितेन्द्र भाई , गीत की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये के लिये आपका हार्दिक अभार !!!!!
खूबसूरत ...मोहक ..सामयिक ..विचारक इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्री गिरिराज जी
अच्छी रचना आ० भाई गिरिराज जी !!!
धृतराष्ट्र से मोह मे अन्धे
अपना अपना बचा रहे है
चौक चौक मे दुर्योधन बन
चौसर द्युत सा सजा रहे है
सच! बड़ी दुविधा है, आज के सामयिक सन्दर्भ में, किसे क्या कहें.. अनुपम रचना, हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी
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