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" एक इशारा अधूरा सा "-- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

एक इशारा अधूरा सा

********************

छू कर

पहन कर

चख कर

देख लेते हैं

कभी खरीदते हैं

कभी यूँ ही लौट आते हैं

सब सही है

अमीरे शहर के लिये !!

दुत्कार है

डांट है

उपेक्षा है

भूख है ,

फटेहाली है

नंगे शहर के लिये !!!

लेकिन ,

जगमगाती,

बार बार जल बुझ कर

बुलाती सी रौशनी

पारदर्शी शो केश

सजी हुई चीजें

कपड़े –लत्ते

मिठाइयाँ

न जाने क्या क्या

आमंत्रण देती

मजबूर करती

देखने के लिये  

प्रेरित करती है

दोनो को

बराबरी से !!!!

कहीं वो न हो जाये

जिसका डर है

ठीक है ,

ये ज़ुर्म है ,

सजा भी है ,

पकड़े जायेंगे  

भोग भी लेंगे

सब मंज़ूर  !!!!!

पर उस शो केस का क्या ?

वो तो टूट ही चुका

बिखर गया

टुकड़ों –टुकड़ों में  

खामोश है

उदास है ,

अन्दर ही अन्दर

रोता , बिलखता

परित्यक्त सा ,

पड़ा है कोने में

अन्दर से बाहर तक

चकनाचूर !!!

तब !!!!!

एक प्रश्न खड़ा होता है

क्या शो केस

अपारदर्शी नहीं हो सकते ?

*************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 17, 2013 at 6:26pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना आपको कहीं छू पायी ये मेरे लिये सौभाग्य सूचक है , उत्साह वर्धक है !!!! आपका मार्ग दर्शन और स्नेह  हमेशा बनाये रखें !!!! आपका तहे दिल से शुक्रिया भाई जी !!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 1:29am

इस वैचारिक रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय गिरिराजजी. रचना वाचन के बाद मन प्रसन्न है. विलम्ब से आपकी रचना पर आ पाया हूँ इसका खेद है.  यह खेद अधिक मुखर है अब !

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 11, 2013 at 6:41pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना की सराहना कर , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 3:40pm

आदरणीय गिरिराज जी ...बातों ही बातों में गहरी बात ..कवी की नजर कहाँ टकरा जाए ..पता नहीं ..इस रचना के लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 11, 2013 at 7:35am

आदरणीय सुरेन्द्र भाई जी , आपकी प्र्तिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करती आयी हैं !!!! आपका तहे दिल से शुक्रिया !!! आपके स्नेह का  सदा आकान्क्षी हूँ !!!!! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 11, 2013 at 7:32am

आदरणीय अजय भाई , रचना की सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया !!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 11, 2013 at 7:31am

आदरणीय केवल भाई , रचना पर आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया  से मन प्रसन्न हुआ और हौसला भी बढ़ा !!!!! आपका बहुत बहुत आभार !!!!!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 10, 2013 at 11:59pm

पर उस शो केस का क्या ?

वो तो टूट ही चुका

बिखर गया

टुकड़ों –टुकड़ों में  

खामोश है

उदास है ,

संजीदा भाव ....काश ये बात लोग समझ पायें तो न ....टूट गया तो जुड़ता कहाँ है सब व्यर्थ अनर्थ ...सुन्दर रचना
गिरिराज भाई माह के सक्रीय सदस्य चुने जाने पर बधाई ये जोश और बढे समाज रोशन हो ...
भ्रमर ५

Comment by ajay sharma on October 10, 2013 at 11:08pm

बिखर गया

टुकड़ों –टुकड़ों में  

खामोश है

उदास है ,

अन्दर ही अन्दर

रोता , बिलखता

परित्यक्त सा ,

पड़ा है कोने में

अन्दर से बाहर तक

चकनाचूर !!!          wah wah aisi abhivakti ke liye ....shabdo ka tana bana jo  apne buna ,,,,,chitra khiichta hai lower middle class ki mazboori aur hatasha ka   ........ 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 10, 2013 at 8:29pm

आदरणीय भण्डारी भार्इ जी, जब कुछ अनछुए पहलू हमारे पास से सन्न से निकल जाते है। तब हम .....//अन्दर से बाहर तक
चकनाचूर !!!
तब !!!!!.---//.....सोचने को मजबूर हो जाते हैं। बहुत ही सुन्दर बिना किसी संकोच के सरस अभिव्यकित।.....ढेरों शुभकामनाएं। तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें। सादर,

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