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5+7+5+7……..+5+7+7 वर्ण

 

जीवन कैसा

एक चिटका शीशा

देह मिली है

बस पाप भरी है

भ्रम की छाया

यह मोह व माया

अहं का फंदा

मन दंभ से गन्दा

शब्द हैं झूठे

सब अर्थ हैं छूटे

तृप्ति कहीं न

सुख-चैन मिले न

फाँस चुभी है

एक पीर बसी है 

प्यास बढ़ी जो

अब आस छुटी जो

किसे पुकारें

अब कौन उबारे

एक सहारा

माँ यह तेरा द्वारा

हे जगदम्बे!

शरणागत तेरे

आरती गाऊँ

रज माथ लगाऊँ

आन उबारो

यह जीवन तारो

माँ जगदम्बे!

सुन! हे माता अम्बे!  

अब आ जगदम्बे!

   -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 6:33am

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 6:33am

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:07am

माता रानी का वंदन करता हुआ चोका से बेहतरीन चौका लगाया है आपने आदरणीय बृजेश जी...बधाई हो आपको...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 10:16pm

चोका पहली बार पढा , लाजवाब , सुंदर अर्थ लिए , बधाई बृजेश जी।

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 9:38pm

आदरणीय ब्रिजेश जी ..हार्दिक बधाई आपको चोका शिल्प में  माँ जगदम्बे की स्तुति सुंदर हुयी है ..सुंदर भाव ..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 9:33pm

रचना बेहद उम्दा है ..मुझे इस बिधा की कोई जानकारी नहीं है ..इस बिधा को अभी सझना पड़ेगा ..इस रचना के लिए ढेरों बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on October 14, 2013 at 7:53pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार! आपके आशीष के लिए विशेष धन्यवाद!

सादर!

Comment by Meena Pathak on October 14, 2013 at 7:43pm

माँ जगदम्बे!

सुन! हे माता अम्बे!  

अब आ जगदम्बे!............... बहुत सुन्दर, माँ की कृपा आप पर सदैव बनी रहे | 

सुन्दर चोका विधा में रचना  हेतु बधाई स्वीकारे आ० बृजेश जी 

Comment by बृजेश नीरज on October 14, 2013 at 6:56pm

आदरणीय रमेश जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 14, 2013 at 4:54pm

बहुत ही सुंदर आदरणीय आपके चोका विधा में मां की प्रार्थना बहुत ही उत्तम है । आपके इस विधाने मुझे भी प्रेरित किया अस्तुबहुत बहुत धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

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