लोभ कपट को त्यागकर ,रखो परस्पर नेह !
शुद्ध विचारों से करो ,शीतल अपनी देह !!१
याचक भी राजा बना ,राजा मांगे भीख !
काल चक्र से भी तनिक ,ले लो भाई सीख !!२
इतना तुम क्यूँ रो रहे ,भाई घोंचू लाल !
किसने पीटा आपको ,गाल दिखे हैं लाल!!३
अधर तुम्हारे पुष्प से ,मेरे प्यासे नैन !
जिस दिन तुम दिखती नहीं ,रहता हूँ बेचैन !!४
उन्हें देख जलने लगा ,मन का बुझा चिराग !
शनै: शनै: अब फैलती ,पूरे तन में आग !!५
विरह आग में जल रही ,नयनों में था नीर !
अपलक राह निहारती ,विरहन तृषित अधीर !!६
चंचलता जिसमें भरी ,खुजली करता जाय !
वानर का बस काम ये, छीन झपट कर खाय !!७
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सुंदर दोहे बधाई राम शिरोमणिजी। भावपूर्ण दोहों के बीच तीसरे दोहे की जरूरत क्या थी ।
अलग अलग सन्देश लिए सुन्दर दोहे भाई राम जी ,हार्दिक बधाई
लोभ कपट को त्यागकर ,रखो परस्पर नेह !
शुद्ध विचारों से करो ,शीतल अपनी देह !!१..........सुंदर संदेशप्रद दोहा
अधर तुम्हारे पुष्प से ,मेरे प्यासे नैन !
जिस दिन तुम दिखती नहीं ,रहता हूँ बेचैन !!४...........प्रेम को समर्पित
विरह आग में जल रही ,नयनों में था नीर !
अपलक राह निहारती ,विरहन तृषित अधीर !!६..........विरह वेदना भी
चंचलता जिसमें भरी ,खुजली करता जाय !
वानर का बस काम ये, छीन झपट कर खाय !!७...........मजेदार
आदरणीय रामभाई, मजा आ गया, स्वादिष्ट खिचड़ी हुयी :)))))))))))))) बधाई स्वीकारें
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