For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चॉदनी रात में

खुले आसमान में
विचरण करते चॉंद को देख रहा था
कितना निश्‍चल कितना शांत
चला जा रहा है अपने रस्‍ते
पर प्रकाश से प्रकाशमान पर
ना ईष्‍या ना कुंठा,ना हिनता
प्रकाश दाता के अस्‍त पर
बन कर प्रतिबिम्‍ब उसका
अंधेरे को दूर कर उजाले के
लिये सदैव प्रत्‍यनशील
भले रोक ले आवारा बादल

उसका रास्‍ता
छुपा ले प्रकाश उसका
मगर फिर भी प्रत्‍यन कर
बादलो से निकल कर

पुन: धरती को, अंबंर को, मानव को
प्रकाशमान

अंहकार भी नही शीतलता पर
अपनी चादनी पर,
दूसरे को सुख देकर खुश
मगर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
धंमडी,ईष्‍यावान, लोभी
स्‍वार्थ के वशीभूत
माँ बाप को भी भूलते
जिसके प्रकाश से प्रकाशमान है
आखिर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
मानव क्‍यों है

अपने कर्तव्‍य अपने धर्म से

भटक रहा है
क्‍यों नही चाँद से सबक लेता

क्‍यों नही चाँद से सीखता
पर प्रकाश से प्रकाशमान होकर भी
रौशनी दिखाने का
ईष्‍या,कुन्‍ठा,घंमड को दूर भगाने का
कठिन राहों से भी गुजरते हुए
खुद को समाज को रौशनी दिखाने का

शीतलता प्रदान करने का

अखंड के आखो में बस जाने का

सब के दिल को भाने का ..................

.

अखंड गहमरी मौलिक व अप्रकाशित

Views: 472

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 1:51pm

रचना में भाव एवं कल्पना काफी अच्छी है... पर कुछ त्रुटियों के मामले में सुशील भाई से सहमत !!!!

Comment by Sushil.Joshi on October 27, 2013 at 6:14am

सुंदर भावाभिव्यक्ति है आ0 अखंड भाई जी..... बधाई हो....

अनेक पंक्तियों में टंकण त्रुटियाँ हैं जिन्हें बताने का प्रयास किया है..... कृपया देख लीजिएगा क्योंकि इतनी त्रुटियाँ सहर्ष स्वीकार नहीं की जा सकती साहित्य में........ और वह भी हिंदी में हों तो और भी दिल दुखता है.....

चॉदनी रात में......................... चाँदनी रात में

विचरण करते चॉंद को देख रहा था...............विचरण करते चाँद को देख रहा था

ना ईष्‍या ना कुंठा,ना हिनता......................ना ईर्ष्या ना कुंठा,ना हीनता

मगर फिर भी प्रत्‍यन कर......................मगर फिर भी प्रयत्न कर

बादलो से निकल कर...................बादलों से निकल कर

पुन: धरती को, अंबंर को, मानव को........................पुन: धरती को, अंबर को, मानव को

अंहकार भी नही शीतलता पर................... अहंकार भी नहीं शीतलता पर

अपनी चादनी पर,............... अपनी चाँदनी पर,

धंमडी,ईष्‍यावान, लोभी................. घमंडी,ईष्‍यावान, लोभी

ईष्‍या,कुन्‍ठा,घंमड को दूर भगाने का...............ईर्ष्या,कुंठा,घमंड को दूर भगाने का

अखंड के आखो में बस जाने का.............. अखंड की आँखों में बस जाने का

कृपया इसे अन्यथा न लीजिएगा और यदि मैंने ऊपर कहीं ग़लत लिखा हो तो अवश्य मुझे बताइएगा......

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 26, 2013 at 10:15pm

बहुत सुंदर भाव, बधाई आदरणीय अखंड जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 26, 2013 at 6:59pm

आदरणीय अखंड भाई , सुन्दर भाव , सुन्दर सन्देश देती आपकी रचना के लिये आपको बधाई !!!!!!

Comment by vijay nikore on October 26, 2013 at 5:55pm

बहुत अच्छे भाव हैं। बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on October 26, 2013 at 12:45pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service