कभी औरों से टकराते कभी खुद से खफा होते ।
न आते ज़िन्दगी में तुम तो मौसम ए खिजां होते ।
मोहब्बत की पनाहों में हुये हालात ऐसे हैं ,
न खामोशी से छुपते हैं न लफ़्ज़ों से बयाँ होते ।
दिले नादाँ को समझायें ज़रा सी बात कैसे हम ,
प्यार के हादसे अक्सर दिलों के दरमियाँ होते ।
प्यार कहने की ख्वाहिश में सिमट जाता है अपना दिल,
खुदा तेरी तरह होते जो हम भी बेज़ुबाँ होते ।
खुदी का घर मिटाये बिन सुकूँ का दर नही मिलता ,
अगर ये इश्क ना होता कहाँ जाके फना होते ।
ये दरिया के किनारे हैं जो सदियों से मचलते हैं ,
मगर कुछ बात ऐसी है न मिलते ना ज़ुदा होते ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
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ये दरिया के किनारे हैं जो सदियों से मचलते हैं ,
मगर कुछ बात ऐसी है न मिलते ना ज़ुदा होते ।
खूबसूरत गज़ल का खूबसूरत शेअर!
बधाई !!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेश भाई
जय हो आदरणीय आपकी सदा जय हो, आनंद आ गया वो भी गले तक । बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर, सादर
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीय संदीप भाई बहुत बहुत अनुग्रहीत हूँ आपसे
आदरणीय सुशील जोशी जी बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका
आदरणीय विजय जी तहे दिल से आभार करता हूँ
आदरणीय पाठक जी बहुत बहुत आपका शुक्रिया
आदरणीय जितेंद्र जी बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय गिरिराज भाई बहुत बहुत आभार आपका
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