कृति मौलिक न होने के कारण प्रबंधन स्तर से हटा दी गई है |
एडमिन
2013083107
Comment
लघु कथा तो नहीं पढ़ सका परन्तु मौलिकता ह्=को लेकर जो तर्क नीरज जी प्रस्तुत कर रहे हैं उससे स्पष्ट रूप से अपनी असहमति व्यक्त करता हूँ
....... किसी रचना के तीन मूल तत्व होते हैं -
भाव - आप क्या भाव प्रस्तुत करते हैं
कहन - भाव को किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं
शिल्प - किस विधा में कहते हैं
शिल्प और कहन सीखने की चीज ... भाव मौलिकता की बात है .... कोई इंसान कहन और शिल्प को सीख कर पत्रकार हो सकता है .. रचनाकार नहीं हो सकता ...रचनाकार होने के लिए भाव की मौलिकता आवश्यक है
मौलिकता को लेकर एक अनावश्यक बहस चल रही है। अपनी सोच, समझ और विचारों के साथ कोई रचना न करके किसी अन्य के रचे की बैसाखी पर चलकर यदि रचनाकर्म करना है और फिर मौलिकता की आपत्तियों को चुनौती देनी है तो फिर कहना क्या? विश्व के तमाम नामी गिरामी साहित्यकारों की रचनाओं को अपने शब्दों में ढालकर प्रस्तुत कर दिया जाए। काहे को इतना श्रम करना। छंद और गज़ल का शिल्प सीखना। इतने दिनों से नाहक मैंने अपना समय नष्ट किया।
अपनी गलती न मानकर अनावश्यक बहसों में अपना और दूसरों का समय नष्ट करना कुछ लोगों का शगल होता है।
एडमिन साहब का निर्णय स्वागत योग्य है।
एडमिन का फैसला स्वागतयोग्य ,
एडमिन साहब बिलकुल सही प्रश्न है क्या कोई कहानी मौलिक हो सकती है , क्या मै कुछ ऐसा लिख
सकता हूँ जो पहले से कोई ना जानता हो , जब लेखक कोई ऐसी कहानी लिखता है जो मौजूदा हालात
पर लिखी गयी होती है और सभी उन हालातों से परिचित होतें हैं तो यकीनन वो कहानी बहुत ही ज्यादा सराही जाती है ,
लोग कहते हैं कितनी हकीकत छुपी है इस कहानी में और लोग उस हकीकत से परिचित होते हैं फिर भी आप अगर उसे मौलिक
और नव विचार कहते हैं तो थोड़ा सोच में पड़ जाता हूँ , कहानी होती ही है समाज की हकीकत पर और उस हकीकत पर
जिसे से हर कोई वाकिफ हैं फिर भी उसकी कहानी मौलिक है ?
चलो आज ये बात सीखने को मिली कि कहानी का कोई शिल्प नही होता
अगर मैंने इस कहानी को कविता में ढाल लिखता तो शायद कोई
उंगली ना उठाता ।
एडमिन की जय हो । फैसला कबूल है
कथ्य, पात्र सब कुछ वही है फिर भी मौलिक है, क्या बात है ? अब तो यह जानना होगा कि वास्तव में मौलिक कहेंगे किसे ?
नीरज मिश्रा जी, यदि आप ऐसे विचारों के पोषक है तो कृपया इस मंच को बख्श दें ।
यह पोस्ट कुछ घंटों बाद हटा दी जायेगी ।
नीरज जी और गीतिका जी दोनों के वार्तालाप को पढ़कर मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि ओ बी ओ एक ऐसा मंच है जो नव विचार नव सृजन का स्वागत करता है नीरज जी गनीमत है कि आपकी ये कथा प्रकाशित तो गई बहुत वक़्त पहले मेरी लिखी एक कहानी में क्यूंकि एक लोक कथा की झलक आ रही थी आदरणीय योगराज जी ने प्रकाशित ही नहीं की थी ,जिस निर्णय का महत्त्व आज मेरी समझ में अच्छी तरह आ चुका है और यही इस मंच का उद्देश्य है आशा है आप मेरा आशय समझ गए होंगे शुभकामनायें
मैं आ ० गीतिका जी ,ब्रजेश नीरज जी , और बन्दना जी के टिप्पणी से पुर्णतः सहमत हू , रचना मौलिक तो होनी ही चाहिए ,ऐसे मौलिकता तो परिभाषित है लेकिन दिए जा रहे तर्कों के सन्दर्भ में प्रबंधन को ह्श्तक्षेप करना चाहिय ,सादर
आदरणीय नीरज जी यह तो ठीक है कि दुनिया में विचार सीमित हैं उन्हीं को घुमा फिरा कर सब कहते और लिखते हैं लेकिन यदि किसी रचना को पढ़कर यह लगे कि यह तो वही कहानी है तो मौलिकता पर प्रश्न तो उठता है जहाँ तक गीता जैसी प्रसिद्ध रचना के किसी संस्करण को पढने की बात है तो गीता शुद्ध विचार है जिसने भी लिखा उसने चिंतन से विस्तार जरूर दिया या अनुवाद / भावानुवाद रहा होगा रामायण वाल्मीकि जी ने लिखी और रामचरित मानस के रूप में तुलसीदास जी ने भी एक ही कथा है लेकिन विचार देश काल परिस्थितियों का विवेचन सिर्फ भाषाई स्तर पर ही नहीं मानसिक स्तर पर भी पाठक को प्रभावित करते हैं और तभी दोनों कृतियाँ कालजयी हुई कृपया इन बातों को अन्यथा मत लीजिये कला में चमत्कार होगा तभी वह आकर्षक होगी
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