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लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है /

1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2


लबों से आज गायब हो गई मुस्कान है
अजब सी अब परेशानी लिए इन्सान है /

कभी तो दिन भी बदलेंगे ,मिलेगा चैन तब
दुखों का अंत होगा तब यही अनुमान है /

गिले शिकवे यूँ अब हावी हुए रिश्तों पे हैं
लगा अब दांव पर परिवार का सम्मान है /

किसे अपना कहें किसको पराया हम कहें
यहाँ हर चेहरे की अब छुपी पहचान है /

रचे हैं साजिशें गहरी मगर अब सोचते
जफ़ा पाकर खुदी का डोलता ईमान है /

..............................................

...........मौलिक व अप्रकाशित.........

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Comment

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Comment by Sarita Bhatia on October 29, 2013 at 11:30pm

शुक्रिया सुशील भाई 

Comment by Sarita Bhatia on October 29, 2013 at 11:30pm

आदरणीय शीज्जू जी तह दिल से शुक्रिया आपको गजल पसंद आई 

Comment by Sarita Bhatia on October 29, 2013 at 11:29pm

भाई विजय मिश्र जी हार्दिक अभिनन्दन 

Comment by Sarita Bhatia on October 29, 2013 at 11:29pm

आदरणीय गिरिराज sir ,हार्दिक आभार 

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 10:44pm

सुंदर प्रस्तुति है आ0 सरिता जी.... बहुत बहुत बधाई.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 29, 2013 at 7:42pm

आदरणीया सरिता जी ग़ज़ल बहुत अच्छी है सादर बधाई स्वीकार करें, 


इसमें आप "है" रदीफ़ को हटाकर गैर-मुरद्दफ ग़ज़ल की तरह पेश करें तो लुत्फ और बढ़ जायेगा मसलन-
//लबों से आज गायब हो गई मुस्कान  

अजब  है अब परेशानी लिए इन्सान 

कभी तो दिन भी बदलेंगे सुकूं होगा

दुखों का अंत होगा है यही अनुमान // और बह्र होगा 1222 1222 1222


ये मेरी अपनी राय है इसका मतलब ये कतई नही है कि आपकी ग़ज़ल में खामी है

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 5:48pm
बहुत सुंदर मिजाज है और सारे शे'र बेहद खूबसूरत .साधुवाद सरिता दीदी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 29, 2013 at 5:29pm

आदरणीया सरिता जी , सुन्दर गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!

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