साहित्य दीप ! शब्दों की ज्योति !!
साहित्य दीप
शब्दों की ज्योति
अनुभव अनुभूति की ऊर्जा हो
विस्फोट नहीं दूषण भी नहीं
संस्कृति पर सार्थक चर्चा हो
विज्ञान सृजन की बाती हो
सभ्यता की जिसमे थाती हो
सब मौलिक हो नूतन भी हो
परहित कर मानव हर्षा हो
इस दीप पर्व पर मिल गायें
पद छंद शबद और कवितायेँ
तमसो माँ ज्योतिर्मय मन्त्र
शुभ लाभ की अविरल वर्षा हो
रोशनी महल से नुक्कड़ तक
समता राजा से फक्कड़ तक
माँ अन्नपूर्णा धन - धान भरें
कोई भूखा न प्यासा हो
भोले की अविनाशी काशी
मस्तों की मलंगो की काशी
काशी मुंशी भारतेंदु की
कबीरा की नानक की काशी
काशी तो स्वयं प्रकाशित है
काशी त्यौहार मनाये जब
यह देव लोक हो , ऐसा हो
वह विश्व गुरु के जैसा हो !
- अभिनव अरुण
{ 31102013 - सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित }
Comment
बहुत शुक्रिया श्री लक्षमण जी रचना पसंद करने के लिए !
हार्दिक आभार आदरणीय श्री गीत जी ,आपको सपरिवार दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें !!
शब्दों से संजोया हुआ, आपका दीपोत्सव मन को छू गया आदरणीय अभिनव अरुण जी, बहुत बहुत बधाई व् शुभकामनायें
शब्दों की ज्योतिर्मय किरने आपको प्रकाशित करती रहे | दीपावली पर इन्ही शुभकामनाओं के साथ सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई श्री अभिनव अरुण जी
आदरणीय अभिनव भाई , सब के लिये शुभेच्छा और काशी की महिमा से ओत प्रोत सुन्दर रचना के लिये आपको हर्दिक बधाई !!!!!!
बहुत आभार श्री अखिलेश जी साथ ही प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !!
अपनी कविता में हर वर्ग के लिए खुशहाल दीवाली की सुंदर कामना की है, बधाई अभिनव अरुण भाई।
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