पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
कण कण में देखें अपने सरबस को ।
शीश मोर मुकुट गले पुष्प माला ।
बड़ो प्यारो लागे मेरा नन्द लाला ।
ललचाये दिल मेरा उनके दरस को |
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
रेशम सी बालों कि लट प्यारी प्यारी ।
चन्दा से मुखड़े पे घटा कारी कारी ।
होंठ छलकाते हैं मधुर मय रस को ।
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
एक हाथ वंशी है तो दूजे लकुटिया ।
मोहताज़ उनकी मेरे मन की कुटिया ।
दिल से लगाऊं उनके चरणों की रज को ।
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
काले काले नैना हैं काली कमलिया ।
निहारा करूँ मै वो सूरत सवंलिया ।
पाया है मैंने जैसे अमृत कलस को ।
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
ग्यानी योगी संत जन पार नही पावें ।
वेद पुराण भी कह नेति नेति गावें |
गाउँ भला मै कैसे उनके सुयस को ।
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम'
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय चन्द्र शेखर जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शिज्जू भाई ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गीतिका जी
आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय विजय जी आपको भाव पूर्ण अनुग्रह ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जीतेन्द्र जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी
भक्ति भाव अच्छे लगे। बधाई
कृष्ण के प्रेम में डूबे इस सुंदर गीत हेतु बहुत बहुत बधाई आ0 नीरज भाई.....
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