मोहब्बत आग का दरिया भरोसा तोड़ देती है ।
खुदी आधी जलाकर ही भला क्यों छोड़ देती है ।
छलावा इस से बढ़कर ना कहीं देखा ज़माने में ।
समंदर गम के भर लाये ख़ुशी कि बूँद पाने में ।
लिए नादान सी हसरत किसी मासूम से दिल को ,
ख़ुशी का आसरा देकर ग़मों से जोड़ देती है ।
अच्छा था खुदी मेरी ये खुद में ही समा लेती ।
कहीं अपनी पनाहों में ये मुझको भी छुपा लेती ।
लुटा बैठा ये दीवाना कहाँ अपना मकां ढूढे ,
ये सबकुछ छीनकर मेरा मुझे क्यों छोड़ देती है ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
अच्छी प्रस्तुति है आ0 नीरज भाई...... बहुत बहुत बधाई....
BHAROSA BANAY RAKHEN MOHABBAT HO YA KAVTA. GOOD WISHS.
सुन्दर पंक्तियाँ है ,,, ग़ज़ल के शिल्प पर साध लें तो सोने पर सुहागा हो जाये
आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर भावों और सुन्दर बातों से रची रचना के लिये आपको दिली बधाई !!!!
आदरणीय नीरज जी इश्क में घायल दिल से निकली बढ़िया रचना प्रयास अच्छा है और बेहतर हो सकता था खैर प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.
इस्लाह: यही ओ बी ओ पर पाठशाला ग्रुप में ग़ज़ल का अनुसरण करें यदि ग़ज़ल सीखना चाहते हैं.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ,,,,,,,बहुत बहुत बधाई भाई नीरज जी। ।सादर
वाह भाई नीरज जी आपकी इस रचना पर मैं बस यही कहूँगा कि-
शिकस्ता दिल कोई आशिक कि जीना छोड़ दे गर
सुखन के तो समंदर से यूँ मोती कौन लाये
बस सुखन के लिये थोड़ा शिल्प पर भी नज़रे इनायत करें
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