For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बताशा लगती हो तुम

बताशा लगती हो तुम

.

हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,

घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,

जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,

तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,

आँखें मूँद कर मृतप्राय हुए चित में यूँ,

सुंदर, सजग अभिलाषा लगती हो तुम,

नेह भरी देह का जो, रस पियूँ घोल-घोल,

चाशनी में डूबा सा बताशा लगती हो तुम।

----------------------------------- सुशील जोशी

“मौलिक व अप्रकाशित”

Views: 1137

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 4:08am

हा..हा..हा...... आपके अनुमोदन से मन प्रसन्न हो गया आ0 सौरभ जी.... वैसे उर्दू और हिंदी तो बहनें ही हैं..... इसलिए उर्दू बोलने वालों के लिए इसमें संशोधन की उचित छूट दे देता हूँ कि वे हिंदी के स्थान पर उर्दू लिख सकें.... हा..हा....हा......

आपके सुझाव को भविष्य में अपनी रचनाओं पर अमल में लाने का संपूर्ण प्रयास रहेगा....

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 4:05am

बहुत बहुत धन्यवाद आ0 बृजेश जी.....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 14, 2013 at 12:02am

जलहरण घनाक्षरी [३२ वर्णों का १६-१६ यति पर लघु लघु से पदांत] का इतना सुन्दर और व्यंग्यात्मक मिसाल दिया है आपने, आदरणीय !!

हृदय से बधाइयाँ स्वीकार कीजिये..

हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,

घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम.... . .. जिसकी ज़ुबां उर्दू की तरह .. यानि उर्दू पर मिट-मिट जाने वालों को बढिया उत्तर दिया है आपने .. हा हा हा हा हा.......

बारम्बार बधाई

सादर

एक बात:

छांदसिक रचनाओं को प्रस्तुत करने क्रम में छंदों के नाम और उनका संक्षिप्त विधान अवश्य दे दिया करे.

Comment by बृजेश नीरज on November 12, 2013 at 11:23pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Sushil.Joshi on November 12, 2013 at 7:36am

हा...हा..हा..... आ0 विजय जी....आपने सही कहा..... लेकिन इसी मिठास को तो बताने का प्रयास किया है मैंने यहाँ पर...... इतनी मीठी कि जैसे चाशनी में बताशा भी डाल दिया गया हो...... यानि डबल मीठी.... हा...हा..हा....... बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिप्पणी हेतु.....

Comment by Sushil.Joshi on November 12, 2013 at 7:31am

आपके अनुमोदन के लिए अतिश: धन्यवाद आ0 मीना जी....

Comment by Sushil.Joshi on November 12, 2013 at 7:30am

हा..हा...हा...... नेक सलाह एवं स्नेहिल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आ0 राजेश कुमारी जी.....

Comment by Sushil.Joshi on November 12, 2013 at 7:29am

बहुत बहुत धन्यवाद आ0 राम भाई जी....

Comment by विजय मिश्र on November 11, 2013 at 5:52pm
सुशीलजी , बेशक एक सुंदर श्रींगारिक रचना ,मजेदार शब्द संयोजन मगर एक खटका है ,बतासा तो स्वेम चासनी का रवा है और अगर इसे चासने की कोशीश की तो फिर चासनी ही बन जाता है .भाव की दृष्टि से रचना बहुत सुंदर है .बधाई .
Comment by Meena Pathak on November 11, 2013 at 2:03pm

बहुत सुन्दर मीठी सी रचना :) बहुत बहुत बधाई | सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ  _____ निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन…"
50 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service