!!! सत्य खुलकर पारदर्शी हो गई !!!
बह्र - 2122 2122 212
आज कल की धूप हल्की हो गई।
रंग बातें अब चुनावी हो गई।।
आईना तो खुद बड़ा जालिम यहां
सत्य खुल कर पारदर्शी हो गई।
प्यार का अहसास सुन्दर सांवरा,
दर्द बाबुल की कहानी हो गई।
जब कभी उम्मीद मुशिकल से जगे,
आस्था भी दूरदर्शी हो गई।
आईना को तोड़कर बोले खुदा,
श्वेत दाढ़ी आज पानी हो गई।
शोर है कलियुग यहां दानव हुआ,
साधु सन्तों सी निशानी हो गई।
आज केवल धन गुमां अहसास है,
जोर की लाठी चलानी हो गई।
बोल 'सत्यम' सांस भी जब तक चले,
रहनुमा भी बेईमानी हो गई।
के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 अरून अनन्त भाईजी, आपके स्नेह हेतु आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आ0 सुशील भाईजी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आ0 सौरभ सर जी, प्रस्तुत गजल पर आपकी विस्तृत चर्चा से मेरे मन की अशांति दूर हुई। अभी मुझे बहुत कुछ सीखना है, खास कर इनके दोषों के बारे में। आपका तहेदिल से आभार। सादर,
आदरणीय केवल भाई जी बहुत ही सुन्दर प्रयास किया है आपने इस हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय श्री सौरभ सर की विस्तृत टिपण्णी पर गौर फरमाएं.
आज कल की धूप हल्की हो गई।
रंग बातें अब चुनावी हो गई।।........... शुतुर्गुर्बा का दोष है सानी में. बातें के साथ क्रिया बहुवचन की होगी.
आईना तो खुद बड़ा जालिम यहां
सत्य खुल कर पारदर्शी हो गई।.......... सत्य का लिंग परिवर्तन हो गया है, यह तो एक बात. सत्य पारदर्शी ही होता है, केवल भाईजी.
प्यार का अहसास सुन्दर सांवरा,
दर्द बाबुल की कहानी हो गई।......... .भावुकता ध्यानाकर्षित करती तो है.
जब कभी उम्मीद मुशिकल से जगे,
आस्था भी दूरदर्शी हो गई।................ इस शेर के उला में हुए दोष पर बात चल चुकी है, भाईजी. आपने यथोचित उत्तर भी दिया है, किन्तु उत्तर से मन संतुष्ट नहीं हुआ.
आईना को तोड़कर बोले खुदा,
श्वेत दाढ़ी आज पानी हो गई।............ इस शेर का स्पष्ट अर्थ मुझे नहीं सूझा.
शोर है कलियुग यहां दानव हुआ,
साधु सन्तों सी निशानी हो गई।........... बहुत खूब !!
आज केवल धन गुमां अहसास है,
जोर की लाठी चलानी हो गई।............... धन गुमां अहसास ! ऐसे प्रयोग से बचना उचित माना जाता है.
बोल 'सत्यम' सांस भी जब तक चले,
रहनुमा भी बेईमानी हो गई।.. ......... मक्ते से कुछ स्पष्ट नहीं हुआ.
भाई केवलजी, बह्र में मिसरों को रखना ग़ज़लकार पहला कर्तव्य है. परन्तु, इस ग़ज़ल को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों मात्राओं या वज़्न के हिसाब से मिसरों में शब्द भरे गये हैं. आप अपनी प्रस्तुति पर थोड़ा समय दें इसका सुझाव कई बार दिया जा चुका है. लिखने को तो हम सभी लिखते हैं. लेकिन उसके लिए तैयारी करना और संयत हो कर लिखना उचित माना जाता है.
शुभ-शुभ
आ0 केवल भाई..... भावों का सुंदर संप्रेषण है....... शिल्प के विषय में अनभिज्ञ हूँ इसलिए कुछ नहीं कहूँगा..... टंकण त्रुटियाँ आपकी मजबूरी है...... यदि थोड़ा सा प्रयास करें तो यूनिकोड इंस्टाल कर उसके की-बोर्ड पर हाथ बैठाएँ..... फिर परिवर्तित करने का सारा झंझट ही ख़त्म हो जाएगा.......
आ0 आशुतोष भाई जी, आपके स्नेह एवं गजल पर उत्साहवर्धन टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 गीतिका जी, आपके स्नेह हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 मीना जी, आपके स्नेह एवं गजल पर उत्साहवर्धन टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 राम शिरोमणि भाई जी, आपके स्नेह एवं गजल पर उत्साहवर्धन टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,
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