ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
अक्षरों में खुदा दिखाई दे
अब मुझे ऐसी रोशनाई दे |
हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,
सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |
रोशनी हर चिराग में भर दूं ,
कोई ऐसी दियासलाई दे |
माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,
ले ले सबकुछ वही मिठाई दे |
धूप तो शहर वाली दे दी है,
गाँव वाली बरफ मलाई दे |
बेटियों को दे खूब आज़ादी ,
साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे |
तल्ख़ लहजा तमाम लोगों को,
मीर दे मीर की रुबाई दे |
दर्द होरी सा दे रहा है तो,
साथ धनिया सी एक लुगाई दे |
घूस के सौ दहेज़ से बेहतर,
अपने हाथों बनी चटाई दे |
*सर्वथा मौलिक - अप्रकाशित .
(c)&(p) - अभिनव अरुण .
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