भोले मन की भोली पतियाँ
लिख लिख बीतीं हाये रतियाँ
अनदेखे उस प्रेम पृष्ठ को
लगता है तुम नहीं पढ़ोगे
सच लगता है!
बिन सोयीं हैं जितनीं रातें
बिन बोलीं उतनी ही बातें
अगर सुनाऊँ तो लगता है
तुम मेरा परिहास करोगे
सच लगता है!
रहा विरह का समय सुलगता
पात हिया का रहा झुलसता
तन के तुम अति कोमल हो प्रिय
नहीं वेदना सह पाओगे
सच लगता है!
संशोधित
मौलिक व अप्रकाशित
९॰११॰२००० - पुरानी डायरी से
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आ० बृजेश जी! सर्वप्रथम आपकी बधाई स्वीकार करती हूँ|
जी नहीं ये रचना देश दुनिया का दुख दर्द बयान करने वाली नही है| आपके समस्त प्रश्नों का सम्मान करती हूँ| रचना मंच से वापस लेने के लिए निवेदन करती हूँ|
सादर !!
आभार आ० सौरभ जी!
सुन्दर रचना! इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!
आपकी रचना ने कई प्रश्न उठाये हैं! कुछ आपसे साझा कर रहा हूँ! आप जैसी विदुषी का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण होगा, रचनाकर्म के प्रति एक नयियो दृष्टि देने में सहायक होगा-
आपके अंतिम बंद को उदहारण के रूप में लेता हूँ-
//रहा विरह का समय सुलगता............समय सुलगता है?
पात हिया का रहा झुलसता
तन के तुम अति कोमल हो प्रिय
नहीं वेदना सह पाओगे....................हिय के झुलसने की वेदना तन क्यों सहेगा?
सच लगता है!//.............. ?
'हाये रतियाँ'........इसका क्या मतलब? सिर्फ तुकांतता और मात्रा साधने के लिए शब्दों के साथ तोड़ मरोड़ उचित है क्या?
दूसरा प्रश्न- आपने एक कविता पर ये टिप्पणी की है-
//कहते है कि जहाँ भीड़ मे एक पत्थर उछाल फेंको, और जिसे लगे वही कवि| और इन कवियों ने तो कविताई को नुमाइश मे बिकने वाला हर माल २१ रूपय का समझ रखा है| अपने निजी जीवन से रोज की खुन्नस के लिए श्रोता खोजते हैं| बुखार हुआ तो कविता, उधार वापस नही मिला तो कविता, सरसता और उद्देश्यगत काव्य को ताक रख अतुकांत कविता के पत्र को अपनी दैनंदिनी बना रखा है इन महाकवि ने और बिना काम की रोचकता उत्पन्न करने की कोशिशें करते हैं|//
अतुकांत को लक्ष्य कर लिखी गयी आपकी इस टिप्पणी के परिप्रेक्ष्य में आपकी इस रचना पर आपको क्या कहना है? क्या ये देश-दुनिया का दुःख-दर्द बयां करने वाली रचना है?
वाह क्या रवानी है रचना में !
सच लगता है.. :-))))
बधाई हो..
आभार आ० वंदना दीदी!
रहा विरह का समय सुलगता
पात हिया का रहा झुलसता
तन के तुम अति कोमल हो प्रिय
नहीं वेदना सह पाओगे
बहुत सुन्दर भाव और लय बद्ध रचना आदरणीया गीतिका जी
आ० शेखर जी! आपने रचना के संशोधित रूप पर पुनः समय दिया! आभार व्यक्त करती हूँ!
आ० सचिन देव जी! उत्साहवर्धन हेतु आभार!
अति सुन्दर, एक दम लयबद्ध और भावपूर्ण बन पड़ी है रचना। बहुत बधाई, नया संस्करण बहुत अच्छा लगा।
आदरणीय गीतिका जी... आपकी पुरानी डायरी से निकली इस बेहद खूबसूरत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
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