गाँव पँहुचने पर मैय्या जब पूछेगी मेरा हाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
मेरी चिरैया कितना उड़ती
पूछे जब उन आँखों से
पलक ना झपके उत्तर ढूंढें
तब तू जाना टाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
पूछेगी फिर बेला चमेली
कितनी चढ़ी ऊँचाई पर
इस घर में नही कोई सीढ़ी
छोटी है दीवाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
जब वो हंसती कितनी झरती
मुक्तक मणियाँ मुखड़े से
समझाना यहाँ मेरी झोली
अब है मालामाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
पूछेगी उसकी अँखियों का
कजरा अब कितना खिलता
खोल के तू अपने हाथों से
देना ये रुमाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
सुनके मेरी बातें अगर जो
मैय्या का उर भर आये
तुझको कसम है इस बहना की
लेना तू संभाल सखी
कह देना पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अखिलेश जी आपको गीत पसंद आया उसके भावों ने आपको प्रभावित किया ये रचना की सार्थकता हुई ,इस उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभार आपका.
नादिर खान भाई जी हृदय से शुक्रगुजार हूँ आपने गीत को दिल से महसूस किया उसके भावों का अनुमोदन किया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ
आदरणीय अरुण निगम जी आपको गीत पसंद आया,सराहना पाकर हर्षित हूँ बहुत- बहुत आभार आपका,मैंने अंतरा की पंक्तियाँ १७ ,१४ मात्राओं पर बाँधी हैं अतः उसी के अनुसार शब्द फिट करने का प्रयास किया है.
अन्नपूर्णा जी गीत आपको पसंद आया इसके भाव आपके दिल तक पंहुचे लिखना मेरा सार्थक हुआ दिल से आभार आपका
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी आपने सही कहा ये भारतीय नारी के संस्कार ही हैं जो इतनी सहनशीलता,लोक लिहाज ,माँ बाप का प्यार उसके दिल में होता है जिसके कारण वो सब सहन करती हैं गीत का अनुमोदन करने हेतु आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी गीत आपको पसंद आया उसके मर्म का अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आपका.
मीना पाठक जी गीत के भाव आपके हृदय को छू सके मेरा लेखन सार्थक हुआ बहुत -बहुत आभार आपका.
प्रिय गीतिका सही है आपकी बात ,जीवन में न जाने कितनी बहनों के अनुभवों को बटोर कर आज शब्दों का रूप दिया है,इसके भाव अपना पक्ष रखने में सक्षम हुए तो ये रचना सार्थक हुई दिल से आभारी हूँ.
अरुण श्रीवास्तव जी गीत ने आपके दिल को प्रभावित किया मेरा लिखना सार्थक हुआ बहुत बहुत आभार आपका .
आदरणीय लक्ष्मण जी गीत के भावों का अनुमोदन करने के लिए दिल से शुक्रिया,आप का कहना सही है गाँव में आज भी परिस्थति कम ही बदली है गाँव में ही क्यों शहरों में भी कोई भी लड़की माता पिता को दुःख देना नहीं चाहती उनको पता होता है कि किन सपनो के साथ बेटी का विवाह करते हैं उनके सपने ना टूटें इसलिए काफी हद तक एडजस्ट करने की कोशिश करती है ये उनके संस्कार ही तो हैं .बहुत बहुत आभार आपका.
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