For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते (ग़ज़ल "राज")

२१२२   २१२२  २१२२  २

बह्र- "रमल मुसम्मन महजूफ"

.

मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते

ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते

 

इक  समंदर हम नया दिल में बसा देते 

तुम अगर  आँसू  हमें पीना सिखा देते

 

आजिज़ी होती न दिल में तीरगी होती

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते

 

रूह प्यासी  क्यूँ ये सहरा में खड़ी  होती

प्यार का चश्मा अगर दिल में बहा देते  

 

दिल मुहब्बत में धड़कता ये हमारा भी

तुम अगर उल्फत भरे नगमे सुना देते

 

इक फ़सुर्दा फूल चाहत  में हुए तेरी 

फिर  महक जाते अगर तुम मुस्कुरा देते 

 

गमज़दा बेशक़, नहीं मगरूर हम देखो 

लौट आते, तुम अगर मुड़ कर सदा देते

 

काँपती चौखट न दीवारें हिला करती

प्यार  के आधार पर जो घर टिका देते

 

तल्खियां सब “राज” दिल में दफ्न कर जाती  

ये जमीं तो क्या सितारे भी दुआ देते

*********************

 

आजिज़ी=उकताहट

फ़सुर्दा=मुरझाये हुए

मुन्तज़िर=प्रतीक्षारत

तल्खियां =कडवाहट

तीरगी =अँधेरा (गम )

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

(संशोधित)

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 21, 2013 at 9:19am

आपका बहुत- बहुत आभार आदरणीय अपने मूल संकलन में ढा शब्द के साथ कुछ बेहतर स्पष्ट उला लिखूंगी फिलहाल काम चल गया ,साँस जो गले में अटकी थी वापस आ गई :):):)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 21, 2013 at 12:17am

मुन्तज़िर अरमाँ सभी दिल में दबा  देते 

ऐ खुदा हमको अगर पत्थर बना देते

की जगह

मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते

ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते

कहन बहुत सुलझी प्रतीत नहीं हुई, लेकिन समस्या से निज़ात मिलती दिख रही है, आदरणीया.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 20, 2013 at 10:33am

आदरणीय सौरभ जी इस तरह लिखने से क्या समस्या हल हो रही है??

मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते

ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते  

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 11:19pm

भाई शिज्जू जी, आप अपनी सलाह के मतले को पुनः देखें. क्या दबा और दुआ हमकाफ़िया हो सकते हैं ? इता दोष तो हट जायेगा लेकिन देखिये कौन सा नया दोष मतले पर लद जायेगा.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 19, 2013 at 9:30pm

//मुन्तज़िर अरमाँ सभी दिल में दबा देते
ऐ खुदा वो हमको दिल से जो दुआ देते//  

आदरणीया राजेश दीदी मेरे दिमाग में कुछ आया था आपसे बिना कहे लिख दिया उम्मीद है आपको बुरा नही लगा होगा, शायद इस तरह आप कोशिश करें तो इता दोष हट जायेगा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 9:18pm

आदरणीया, मेरे कहे को सम्मान देने के लिए सादर धन्यवाद.

ख़ैर,  आदरणीया, छुपा देते करने से भी इता दोष का निवारण नहीं होने वाला. क्योंकि आपने इस ग़ज़ल की काफ़िया को लिया है. फिर से कुछ सोचा जाये. और छुपा से तो और सिनाद दोष हो जायेगा.

मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीया, कि सुझाव पर आपने मनोयोग से सोचा. वर्ना अबतो इस मंच पर वाहवाहियों से हुई मुग्धता का आलम ये है कि लोग-बाग सुझावों पर बहस करते हुए मिल रही वाहवाहियों पर आनन्द लेते दीख रहे हैं. रचनाधर्म की ऐसी-तैसी.. हा हा हा..
सादर
 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2013 at 9:05pm

आदरणीय सौरभ जी ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति सराहना ,मशविरा सब हृदय तल से स्वीकार सादर आभार ध्यान दिलाने के लिए आपसे ही रिक्वेस्ट करुँगी कि मतले की पहली पंक्ति में छुपा  देते कर दीजिये.प्लीज   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 5:45pm

कहना न होगा आपकी ग़ज़ल अपनी रवानी में बढ़ती है. अच्छे अश’आर हुए हैं. प्रस्तुतियों में उर्दू शब्दों का होना भावुक अभिव्यक्तियों की कसौटी है शायद. .. :-))))

यह अवश्य है कि अब आपकी ग़ज़लों में इता दोष का होना खलता है. लेकिन देख रहा हूँ इसके प्रति किसी ने अगाह नहीं किया है, शायद.  हम कैसी दिशा की ओर बढ़ रहे हैं ?

खैर.. .

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 18, 2013 at 10:55pm

प्रिय प्राची जी  आपकी उपस्थिति और सराहना से ग़ज़ल धन्य हुई आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 10:44pm

इक फ़सुर्दा फूल चाहत  में हुए तेरी 

फिर  महक जाते अगर तुम मुस्कुरा देते ...बहुत सुन्दर 

आदरणीया राजेश जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है 

हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
29 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ज़िन्दगी जी के कुछ मिला तो नहीं मौत आगे का रास्ता तो नहीं. . मेरे अन्दर ही वो बसा तो नहीं मैंने…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी आयोजन का उद्घाटन करने बधाई.ग़ज़ल बस हो भर पाई है. मिसरे अधपके से हैं…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
14 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service