मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़ कर आते हैं
दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे
अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं
मेरी कलम की स्याही पाकर , रूप गीत का है सँवरा
रस छंदों से मुक्तक मिलकर, काव्य कलष छलकाते हैं
साँस-साँस में छुपे दर्द को ,घूँट-घूँट हैं जो पीते
मिलकर पन्नों से वो आखर ,नव जीवन जी जाते हैं
पल-पल भाव हृदय से उठकर, कलम की बाहों में आकर
कभी ग़मों की मधुशाला या,सरस गीत बन जाते हैं
मन के कागज़ पर लिख देते, सप्तसुरों की परिभाषा
स्वर वीणा के तार छेड़कर, झंकृत ये कर जाते हैं
दोहों छंदों की माटी में ,नव अँकुर हैं जब-जब फूटे
गीतों की सरिता में बहकर, मन सिंचित कर जाते हैं
मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़ कर आते हैं
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(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय सुशील जी गीत पर उसके भाव पर आपका अनुमोदन मिला गीत धन्य हुआ हार्दिक आभार आपका
आदरणीय सौरभ जी गीत आपकी उपस्थिति ,सराहना और परामर्श से धन्य हुआ हार्दिक आभार आपका.
वाह.... बेहद खूबसूरत गीत रचा है आ0 राजेश कुमारी जी ..... यही सत्य भी है...... जो रचना अंतर्मन से जन्म लेती है तब कलम स्वत: ही चल पड़ती है...... और उसका एक अलग ही मज़ा होता है.... जो पाठक के ह्रदय में भी अंदर तक छाप छोड़ता है...... बहुत बहुत बधाई इस सुंदर गीत हेतु....
बढिया गीत रचना. वैसे गेयता और संयत होती.
हृदय से बधाई स्वीकारिये आदरणीया
ढेर सारी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद प्रिय अरुन शर्मा गीत पसंद आया बहुत-बहुत आभार
आदरणीया राजेश माँ जी वाह मुग्ध कर दिया आपने बहुत ही सुन्दर गीत रचा है आपने जो कि स्वयं रच गया वाह वाह हृदयतल से ढेरो बधाई स्वीकारें.
आदरणीय विजय निकोर जी गीत पसंद आया आपकी इस सराहना से गीत धन्य हुआ दिल से आभार आपका
चन्द्र शेखर पाण्डेय जी आपकी प्रतिक्रिया ने दिल छू लिया बहुत बहुत शुक्रिया ,शुभकामनायें आपको
केवल प्रसाद जी आपने गीत के भावों को सराहा लेखन सार्थक हुआ दिल से आभार आपका
इस अनूठी रचना के लिए ढेर सराहना बटोरिये, आदरणीया राजेश जी।
सादर,
विजय निकोर
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