नीरवता , सन्नाटा
शून्यता बस यही तो बचा था
जैसे अंतर के स्वर को
लील चूका हो बाह्य कोलाहल
रिक्त अंतर घट
कोई प्यास भी नहीं बाकी
सुप्त प्राय आत्मा
एकदम शांत
उस जर्जर दरख़्त की
ठूँठ की तरह
जो मौन हो गया ये सोचकर
कि कोई नव कोंपल
अब कभी नहीं फूटेगी
आँखे मूँद कर लेट जाती हूँ
लहरें उछलकर भिगो देती हैं
शायद वार्तालाप करना चाहती हैं
वाचाल जो ठहरी
ये मसखरी भली नहीं लगती
किश्ती हिलती है ,आँखें खोलती हूँ
क्रुद्ध हो घूरने लगती हूँ लहरों को
यकायक नजरें टिक जाती हैं उस पीले पत्ते पर
जो अनवरत बहता जा रहा है
हिचकौले खाता हुआ
उस पर बैठा हुआ एक कीट
अपना जीवन बचने के लिए
संघर्ष करता जा रहा है
प्रकृति का ईशारा समझ
खोल लेती हूँ डायरी का नया पन्ना
और कलम दो उँगलियों की गर्माहट से पुनः
पिघलने लगती है
लहरें मुस्कुरा कर कहती हैं
अभी पूर्णविराम नहीं!!!
***************
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय विजय निकोर जी इस उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभार आपका.
जीतेन्द्र गीत जी आपका बहुत बहुत आभार
आदरणीया अन्नापूर्णा जी आपका बहुत बहुत आभार ,मेरी रचना धन्य हुई
इस सुन्दर संदेशपरक रचना के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी।
सादर,
विजय निकोर
बहुत ही सकारात्मक व् जीवन के प्रति आशा की प्रेरणा देती रचना, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुंदर और संदेश युक्त भाव जिसमे शब्दों का पूरा कमाल दिखता है , आपको बहुत बहुत बधाई ।
आहा.... कितनी सुंदर प्रस्तुति है आ0 राजेश कुमारी जी..... और किस प्रकार अंत में पत्ते पर बैठ कर लहरों के बीच संघर्ष करते हुए कीड़े को देखकर मन में लिखने के प्रति प्रेम को दर्शाया है आपने..... बहुत खूबसूरत...... बहुत बहुत शुभकामनाएँ आपको एवं लेखन के प्रति आपके इस प्रेम को... बधाई हो...
प्रिय प्राची जी कभी-कभी ये भाव दशा हावी हो जाती है जिन्दगी के किसी पड़ाव पर सफ़र बोझिल हो जाता है किन्तु प्रकृति किसी न किसी बहाने से फिर चलने को प्रेरित करती है ,आपने रचना को गहराई से महसूस किया हार्दिक आभार आपका |
आदरणीया राजेश जी
इस रचना की भावदशा से गुज़रना अच्छा लगा... प्रतीत होते अल्पविराम के बाद लहरें मुस्कुराकर कहती हैं अभी पूर्ण विराम नहीं :) बहुत सुन्दर.
हार्दिक शुभकामनाएं
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