हाले दिल जो छुपाने के काबिल न था ।
क्या कहूं मै सुनाने के काबिल न था ।
इस ज़माने ने मुझको नकारा नहीं
मै तो खुद ही ज़माने के काबिल न था ।
इस लिए वो मुझे आज़माते रहे ,
मै उन्हें आज़माने के काबिल न था ।
रंग तनहाइयों में ही भरने लगा ,
वो जो महफ़िल सजाने के काबिल न था ।
बोझ रस्मों रिवाज़ों के कुछ भी न थे ,
पर उन्हे मै उठाने के काबिल न था ।
सूख कर दरिया वो राह में खो गया ,
जो सागर को पाने के काबिल न था ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई. बहर का अभ्यास करने के लिए बेसिक्स (तक्तीअ) वाला चैप्टर रेफेर करें ...उसके बाद निदा फाजली साहब या बशीर बद्र साहब की किन्ही भी 15 गजलों की तक्तीअ करने का प्रयास करें ... ग़ालिब और मीर पर ये न आजमाएं .. उस ज़माने के कहन में और आज में बड़ा फ़र्क है, उलझाव पैदा होगा.
सादर
आदरणीय देवराज भाई बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय विश्वजीत जी बहुत बहुत आभार ।
आदरणीय गोपाल नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय प्रबंधक जी आदरणीय अरुण जी आदरणीय आशुतोष जी
और आदरणीय भंडारी जी
बहर और वजन लिखना तो मुझे आता नही है पर मैंने मात्राएँ ठीक करने कि कोशिश
ज़रूर की हैं मै आपकी ग़ज़ल कक्षा बहुत बार गया हूँ पर वहाँ कि उर्दू मेरी समझ में नही आती
और वहाँ जो शेर उदाहरण में दिए हैं उन्ही में खोकर रह जाता हूँ हालत ये है वहाँ के सारे शेर
मुझे याद हो गए हैं पर मै कोशिश करूंगा कि बहार लिख पाऊँ ।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ।
प्रणाम
नीरज भाई , बहुत अच्छी बातें कही है , शे र मे , पर मात्रा क्रम अलग अलग लगता है सभी मिसरो मे !!! बह्र लिख दें तो कुछ समझ मे आये !!!!
नीरज जी सुंदर ग़ज़ल ..बहर के बारे में जैसा अरुण जी ने कहा लिखेंगे तो समझने में आसानी होगी ..सादर
नीरज भाई कृपया बह्र से अवगत करायें.
मजा आ गया नीरज जी क्या लिखा है आपने
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