आह ! वह सुख ----
पावसी मेह में भीगा हुआ चंद्रमुख I
यौवन की दीप्ति से राशि-राशि सजा
जैसे प्रसन्न उत्फुल्ल नवल नीरजा I
मुग्ध लुब्ध दृष्टि ----
सामने सदेह सौंदर्य एक सृष्टि I
अंग-प्रत्यंग प्रतिमान में ढले
ऐसा रूप जो ऋतुराज को छले I
नयन मग्न नेत्र------
हुआ क्रियमाण कंदर्प-कुरुक्षेत्र I
उद्विग्न प्राण इंद्रजाल में फंसे
पंच कुसुम बाण पोर-पोर में धंसे I
वपु धवल कान्त -----
अंतस में हा-हा वृत्ति, बहिरंग शांत I
लज्ज -कंप भाव अनुराग से सने
अर्ध मुकुल नैनों में स्वप्न थे घने I
रूप अपरूप -----
मंदिर के दीप की वर्तिका अनूप I
दशक पूर्व जैसा ताप जैसा था प्रकाश I
आज भी वही अतृप्ति और वही प्यास I
एक चिर सत्य -----
भाव की सजीवता सदैव ही अमर्त्य I
कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध
स्मृति में कभी नहीं नेह होता वृद्ध I
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीया मीना पाठक जी
आपका बहुत-बहुत आभार i \
सादर i
बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना हेतु बधाई आप को | सादर
आदरणीय निकोरे जी
आपके स्नेह का आभारी हूँ i
सादर i
सर्वथा एक नवीन प्रस्तुति। सुन्दर और मनोहारी। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
प्रियंका बिटिया को आशीष i
एक चिर सत्य -----
भाव की सजीवता सदैव ही अमर्त्य I
कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध
स्मृति में कभी नहीं नेह होता वृद्ध I
सत्य.....सुंदर....भावपूर्ण ..... रचना ...बधाई सर ...
अरुण श्रीवास्तव जी
आपके प्रोत्साहन के लिए शत शत आभार i
एक चिर सत्य -----
भाव की सजीवता सदैव ही अमर्त्य I
कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध
स्मृति में कभी नहीं नेह होता वृद्ध I ........... इस उपसंहारीय कथन के साथ न्याय करता हुआ , भाव को अपने चरम पर पहुंचाता हुआ कविता का एक एक शब्द ! प्रेम के अंतरंग क्षणों का ऐसा वर्णन भी हो सकता है , मुझ जैसे नए लोगों के लिए तो ये आश्चर्य ही है ! इस आश्चर्य को जी लूँ कुछ देर अभी ! आज का दिन अच्छा है मेरे लिए ! सादर !
आदरणीया कल्पना रामानी जी
आपका आशिर्वाद मेरी प्रेरणा बने i शत-शत आभार i
महिमा श्री जी
आपकी प्रतिक्रिया का आभारी हूँ i
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