!!!! टूटते विश्वास को !!!! नवगीत !!!!
किस तरह से
मै बचा लूँ
टूटते विश्वास को
लोग कहते,
भूल जाऊँ
आँख मून्दे ,
कान रून्धे
चुप रहूँ मै , बस सहूँ मै,
इस मिले संत्रास को
जब नज़र में
हो उपेक्षा
और अच्छे
की अपेक्षा
क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,
से हुये आभास को
भूत की यादें
सुखद है
दिल मगर कब
मानता है
कब तलक मानूँ सहारा
हास को परिहास को
भूलना मुश्किल बहुत है
पर असम्भव
तो नही है
नेह झूठे, और झूठे
स्वप्न के आकाश को
*****************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बडे भाई विजय जी ,!!!!!!! रचना की सराहना कर हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!
हर एक अश सुंदर बिम्ब लिये सत्य कथन कहता है|
आपकी सृजन प्रतिभा श्लाघ्य है, आदरणीय गिरिराज जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय बडे भाई अखिलेश जी , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!
छोटे भाई हार्दिक बधाई , इस सुंदर नवगीत के लिए।
आदरणीय बृजेश भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , आपने सही विषय बताया , मै केवल शिल्प ही थोड़ा समझ पाया हूँ , अभी बहुत कुछ सीखना बाक़ी है , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें और मार्ग दर्शन देते रहें !!!!! आपका आभारी हूँ !!!! पंक्तियो को भी मै सुधार कर लूंगा !!!!
लाजवाब! बहुत सुन्दर गीत! आपको हार्दिक बधाई!
एक बात कहना चाहूँगा कि नवगीत व्यक्ति की बात न करके समष्टि की बात करता है!
पंक्तियाँ जिस तरह से तोड़ी गयी हैं उन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है!
जैसे-
//क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,
से हुये आभास को//
इसे यदि ऐसे लिखा जाए-
//क्यों न मानूँ आज
अन्दर,से हुये आभास को//
तो क्या हर्ज़ है?
सादर!
आदरणीया प्राची जी , आपकी प्रतिक्रिया से आनन्द में हूँ , और उससे जादा निश्चिंत हुआ हूँ ! आपकी और आदरनीय सौरभ भाई की चर्चा को पढ के सीखने, लिखने का प्रयास किया था , गलत न हो ये चिंता लगी थी !!! आपके या सौरभ भाई के रचना पढ लिये जाने का इंतिज़ार कर रहा था !!!! आपने पास कर दिया तो बहुत अच्छा लगा !!!!! शत प्रतिशत रचना को समझ कर आपने जो सराहना की , आपका ह्रदय से आभारी हूँ !!!!!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
बहुत ही मर्मस्पर्शी कथ्य को चुना है.
विश्वासघात से उबर पाना.. आघात को भूल, पुनः भरोसा कायम होने दे पाना.. असंभव सा ही होता है
अन्तः की त्रासद पीड़ा कुछ और स्वीकारने ही नहीं देती ..न हास परिहास ध्यान बंटा पाते हैं,... और अन्तः यदि भरोसा करने को भी कहे तो तार्किकता नहीं आगे बढ़ने देती ... यह सच हैं कि उबरना मुश्किल होता है पर यकीनन असंभव नहीं..
बहुत सुन्दर शिल्प के साथ स्पष्ट भावों को सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है..
प्रथम नवगीत बहुत खूबसूरत लिखा है आदरणीय
हृदय तल से असीम शुभकामनाएं
सादर.
आदरणीया कुंती जी , गीत की सराहना के लिये आपका तहे दिल के शुक्रिया !!!!!!!
आदरणीया वन्दना जी , प्रथम नव गीत को सराहने और स्वीकार करने के लिये आपका आभारी हूँ !!!!
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