For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-- जख़्म किसने दिया, बता दूं क्या?

जख़्म किसने दिया बता दूँ क्या ?

दिल में चाकू कहो  घुमा दूं क्या ?

हुक़्म पे तेरे चलता हूं आका ,

ये वफ़ादारियाँ  निभा  दूँ क्या  ?

देखता हूं जिसे मैं सपनों में,

उसकी तस्वीर भी दिखा दूँ क्या  ?

आपकी राजनीति कहती है 

बस्तियाँ आपकी जला दूं क्या  ?

अब किसी काम ही नहीं आता,

आग संविधान में लगा दूँ क्या?

       sube singh sujan

यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है।

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on December 3, 2013 at 8:18pm

वीनस केसरी......ji bhai ji   आपकी बात सही पाी गई है।।धन्यवाद

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:53am

आदरणीय अच्छी ग़ज़ल कही है

आख़िरी शेर पर फिर से गौर फरमा लें .. सानी बेबहर हो रहा है

Comment by सूबे सिंह सुजान on December 2, 2013 at 9:14pm

ajay sharma,  ji namskar........aapka aabhar ....honsla afzai ke liye danywad....

Comment by ajay sharma on December 1, 2013 at 11:34pm

bahut bahut khoob gazal kahi hai mahodaya

Comment by सूबे सिंह सुजान on December 1, 2013 at 8:48pm

अरुन शर्मा 'अनन्त',,,जी , आपका शुक्रिया

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 4:20pm

आदरणीय सूबे सिंह जी खूबसूरत अशआर हुए हैं बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने दो अशआरों में तकाबुले रदीफ़ का दोष है जाँच लें. इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 30, 2013 at 7:25pm

गिरिराज भंडारी,   जी नमस्कार....प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार.

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 30, 2013 at 7:24pm

भाई आपका बेहद शुक्रिया दिल से,  बसंत नेमा जी.......प्रतिक्रिया के लिये आपका आभार..

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 30, 2013 at 7:22pm

जितेन्द्र 'गीत'जी नमस्कार  , आपकी तरफ से बधाई प्राप्त हुई  जो कि दिल से स्वीकार है। आपका धन्यवाद जो हमें इस लायक समझा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on November 30, 2013 at 7:20pm

गीतिका 'वेदिका',बहर है     2 1 2 2 1 2 1 2 2 2 (112)  भी कर सकते हैं...सबसे प्रमुखता से प्रचलित बहर है। आपका आभार प्रतिक्रिया के लिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service