ग़ज़ल-
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मौसम की आसमान में जाहिर हुई खुशी।
खुश्बू है आम की, और कोयल है कूकती।।
बाहर निकल के घर से जरा खेत में चलें,
फ़सलों की खुश्बुओं से निखरती है जिन्दगी...
सूरज को प्रातः काल नमस्कार कीजिये,
अंधकार वो भगाये है, देता है रोशनी....
है आज मेरी और सितारों की ग़फतगू,
ऐ-चाँद पास आओ जरूरत है आपकी...
बरसों गुजर गये हैं मुलाक़ात भी हुये,
अब भी ख़याल आता है मुझको कभी-कभी...
मौलिक व अप्रकाशित....
Comment
अरुन शर्मा 'अनन्त'...आपसे सहयोग चाहिये कि किस प्रकार कथन स्पष्ट नहीं हो रहा है। कृपया कष्ट करें
शिज्जु शकूर, जी आपका शुक्रिया साहब ,, आपकी जर्रा नवाज़ी है।
आदरणीय सुजान सर बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबूल फरमायें
Dr Ashutosh Mishraजी आपका ग़ज़ल पढने व बधाई पर तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ। आपके आगमन पर खुशी हुई।,
Meena Pathak, जी आपका ग़ज़ल पढने व बधाी पर तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ। आपके आगमन पर खुशी हुई।
अरुन शर्मा 'अनन्त', आपकी ओर से विस्तृत टिप्पणी पर आपका बेहद तहे दिल से शुक्रिया
अरुन शर्मा 'अनन्त', जी, आपने इस शेर पर कहा कि कथन स्पष्ट नहीं हो रहा.........लेकिन कथन तो पूरे शेर को पढने पर ही स्पष्ट हो तो क्या बुराी है।
मौसम की आसमान में जाहिर हुई खुशी। भाई जी कथन स्पष्ट नहीं हो रहा है
खुश्बू है आम की, और कोयल है कूकती।।..............मुझे तो यह कथन स्पष्ट लग रहा है , खैर फिर भी अन्य गुरूजनों का विचार क्या हो भी आये तो स्वीकार हो
आपके इस सुंदर प्रयास के लिए तहे दिल बधाई ..सादर
बहुत सुन्दर .. बधाई आप को | सादर
आदरणीय सूबे जी आपने कदाचित इस बह्र पर यह ग़ज़ल लिखी है मेरी जानकारी के मुताबिक.
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
मौसम की आसमान में जाहिर हुई खुशी। भाई जी कथन स्पष्ट नहीं हो रहा है
खुश्बू है आम की, और कोयल है कूकती।।
बाहर निकल के घर से जरा खेत में चलें,
फ़सलों की खुश्बुओं से निखरती है जिन्दगी, बढ़िया शेर
सूरज को प्रातः काल नमस्कार कीजिये, प्रातः 22 को आपने 21 गिना है
अंधकार वो भगाये है, देता है रोशनी. अंधकार को अँधकार करने से बह्र दुरुस्त हो जाएगी.
है आज मेरी और सितारों की ग़फतगू, (ग़फतगू या गुफ्तगू)
ऐ-चाँद पास आओ जरूरत है आपकी. बढ़िया शेर
बरसों गुजर गये हैं मुलाक़ात भी हुये,
अब भी ख़याल आता है मुझको कभी-कभी., सुन्दर
ग़ज़ल पर प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
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