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हाकिम निवाले देंगे

गाँव-नगर में हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे

 

सूख गयी आशा की खेती

घर-आँगन अँधियारा बोती

छप्पर से भी फूस झर रहा

द्वार खड़ी कुतिया है रोती

 

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे

 

सर्द हवाएँ देह खँगालें

तपन सूर्य की माँस जारती

गुदड़ी में लिपटी रातें भी

इस मन को बस आह बाँटती

 

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे

 

चूल्हे हैं अब राख झाड़ते

बासन भी सब चमक रहे हैं

हरियाई सी एक लता है

फूल कहीं पर महक रहे हैं

 

मासूमों को पता नहीं है

वादे और हवाले देंगे

 

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित) 

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on December 1, 2013 at 9:59am

आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 1, 2013 at 9:14am

बहुत अच्छी रचना है इसके जरिये सिस्टम में व्याप्त अव्यवस्थाओं के प्रति आपका आक्रोश बखूबी उभर के  नज़र आ रहा है दिली दाद कुबूल करें

Comment by वेदिका on December 1, 2013 at 9:06am

आमजन की विवशता को शब्द दिये है आपने| इसे ही कहते होंगे रचना मे व्यापकता होना| बहुत बहुत धन्यवाद आ0 बृजेश भाई जी! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 1, 2013 at 6:37am

आदरणीय बृजेश भाई , लाजवाब गीत की रचना की है , मर्मस्पर्शी !!! हर्‍दय से बधाई !!!!

सर्द हवाएँ देह खँगालें

तपन सूर्य की माँस जारती

गुदड़ी में लिपटी रातें भी

इस मन को बस आह बाँटती

 

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे -------------- इस बंद के लिये आपको कोटिशः बधाई !!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 1, 2013 at 12:44am

हृदय को छू गई आपकी रचना, विवशता का सजीव चित्रण उकेरती पंक्तियों पर बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी

Comment by नादिर ख़ान on December 1, 2013 at 12:03am

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे...

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे...

aapki 

मासूमों को पता नहीं है

वादे और हवाले देंगे....

 आदरणीय बृजेश जी आपकी रचना दिल मे उतर गई, बहुत बधाई... 

Comment by ram shiromani pathak on November 30, 2013 at 9:07pm

ज़ोरदार व्यंग वाह। ......बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय भाई बृजेश जी .. हार्दिक बधाई आपको ।।।। सादर

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 6:12pm

आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by coontee mukerji on November 30, 2013 at 4:40pm

कितनी सशक्त रचना है.मजबुरियाँ का कितना विदारक चित्रण.सबके बस की बात नहीं.बृजेश जी हार्दिक बधाई.

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:47pm

आदरणीय राजेश भाई आपका हार्दिक आभार!

दस रसगुल्ले अधिक हो जायेंगे! :)))))))))))

सादर!

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