चोटिल अनुभूतियाँ
कुंठित संवेदनाएँ
अवगुंठित भाव
बिन्दु-बिन्दु विलयित
संलीन
अवचेतन की रहस्यमयी पर्तों में
पर
इस सांद्रता प्रजनित गहनतम तिमिर में भी
है प्रकाश बिंदु-
अंतस के दूरस्थ छोर पर
शून्य से पूर्व
प्रज्ज्वलित है अग्नि
संतप्त स्थानक
चैतन्यता प्रयासरत कि
अद्रवित रहें अभिव्यक्तियाँ
फिर भी
अक्षरियों की हलचल से प्रस्फुटित
क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों का चेहरा
पिघला है-
व्युत्पन्न अदृश्य धारा के पदचिन्ह
शेष हैं अभी
सतर में अर्थ की तलाश है
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सर शायद इस शब्द पर चर्चा नहीं हुई होगी!
खैर..
निष्कर्ष निकल आया आदरणीय ,यह पाठक पर आधारित है,यदि पाठक ने स्वीकार क्र लिया तो आगे चलकर रचनाकार के रूप में प्रयोग करेगा ही।
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए सादर आभार और परों को खोलते हुए के सश्रम,उन्नत सम्पादन के लिए भी।
सादर
//जब शब्द अर्थहीन न हो और उसका प्रयोग भी प्रचलित हो चला हो, तो वह शब्द सर्वमान्य हो जाता है। //
नहीं, यह न कहें कि यह शब्द प्रचलित हो चला है. कवि द्वारा कौतुक करने के लिहाज पर अनुमन्य अवश्य है.
यह कवि की अपनी कलाकारी है जिसे मानने न मानने का अधिकार पाठक को ही है. भाई बृजेशजी की इस रचना की गहराई और इसका गहन रूप ही वे कारण हैं कि मैं इस शब्द को अपने सम्पादन में मान दे बैठा. उसके साथ मैंने छेड़छाड़ नहीं की.
आपको शायद जानकर सुखद आश्चर्य होगा, कि परों को खोलते हुए में सम्मिल्लित भाई बृजेशजी की प्रत्येक रचना पर सापेक्ष संवाद में एक-एक शब्द पर विचार हुआ था. तब मैं लखनऊ प्रवास में था और भाईजी के पास मेरे साथ बिताने के लिए इकट्ठे पाँच घण्टे थे ! खूब-खूब चर्चा हुई थी उनकी प्रत्येक रचना पर ! रचना के एक-एक बिम्ब पर ! एक-एक शब्द को लेकर ! शिल्प और कहन पर !
सादर
जी आदरणीय!
सम्मोहिनी में आबद्ध रहा था...अब नहीं आदरणीय!
जहाँ तक मैं जानती हूँ सर,जब शब्द अर्थहीन न हो और उसका प्रयोग भी प्रचलित हो चला हो, तो वह शब्द सर्वमान्य हो जाता है।
तो इस शब्द के प्रयोग को मान्यता दी जानी चाहिए की नहीं?
क्षमा करें आदरणीय ये प्रश्न आपसे ही इसलिए कर रही हूँ क्योकि दोनों स्थितियां (परों को खोलते हुए का सम्पादन और यहाँ भी इस शब्द पर आपका ही ?)आपसे ही सम्बन्धित हैं।
सादर
//जब चैतन्यता कोई शब्द नहीं होता तो आपने इसे 'परों को खोलते हुए' में क्यों बना रहने दिया? //
आदरणीया वन्दनाजी, यह एक बनाया हुआ शब्द है. किन्तु अर्थहीन शब्द कत्तई नहीं है.
मैं इसी शब्द को ’कहीं और’ क्यों रहने दिया तो इसपर इतना ही निवेदन करना चाहूँगा, जैसा मेंने कहा अभी, यह शब्द कोई अर्थहीनता नहीं ओढ़े बैठा है. ऐसे प्रयोग एक सीमा के अन्दर अज्ञेय जैसे लेखकों/कवियों ने खूब किये हैं. मैं उसी उन्नत अवस्था को ध्यान में रखे इस शब्द की सम्मोहिनी में आबद्ध रहा था... :-))
इस तरह की बातें, ओबीओ पर होती हैं और होते रहनी चाहिये. ओबीओ को मैं एक ऐसा सार्थक मंच मानता हूँ जहाँ किसी रचना से सम्बन्धित हर स्तर पर बातें होती हैं. और एक लेखक तथा पाठक के तौर पर हम संतुष्ट होने के क्रम में सकारात्मक बहस / चर्चा करते हैं.
सादर
आदरणीय सौरभ सर:
यद्यपि आपसे इस बिंदु पर आंशिक चर्चा हो चुकी है पर जानना चाहूँगी आदरणीय की जब चैतन्यता कोई शब्द नहीं होता तो आपने इसे 'परों को खोलते हुए' में क्यों बना रहने दिया? यह शब्द मैंने ध्वज नामक रचना में प्रयोग किया है...अनजाने में।
सादर
आदरणीय बृजेश सर:
आदरणीय सौरभ सर ने रचना को और स्पष्ट कर दिया,इसी परिपेक्ष में कुछ कहने के लिए कहा था आपसे,दूसरी बात आपतो सरलतम शब्दों में गहन बात प्रस्तुत करने में विश्वास रखते हैं...इस रचना में आपने अपनी अन्य रचनाओं की अपेक्षा कठिन शब्दों का प्रयोग किया है,इस लिए भी कुछ कहने के लिए कहा था।
खैर...
आपको पुनः बधाई इस सुंदर रचना के लिए।
सादर
फिर भी
अक्षरियों की हलचल से प्रस्फुटित
क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों का चेहरा
पिघला है-
व्युत्पन्न अदृश्य धारा के पदचिन्ह
शेष हैं अभी
सतर में अर्थ की तलाश है..............
बहुत खूबसूरत भाव आदरणीय बृजेश जी
प्रस्तुत कविता के चार बन्द हैं. रचनाकर्म के चार विन्दुओं को अभिव्यक्त करते हुए से --व्यथित भावों की दशा, आशान्वित मनस की अनवरत सकारात्मकता, यथार्थ के प्रकल्प का संभाव्य तथा अभीष्ट !
इन विन्दुओं की परिसीमा के अनुसार रचनाकर्म को बूझने का प्रयास करें तो इन चार विन्दुओं को आँकती हुई यह रचना रचनाकर्म की परिभाषा रचती हुई सी है.
प्रयोग सार्थक है. बहुत खूब !
और.... यह चैतन्यता कौन सा शब्द है, भाई ?
चेतन से चैतन्य हुआ यानि जो प्रखर रूप से सचेत हो, जिसका भाववाचक प्रारूप चेतनता है.
शुभ-शुभ
आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार! आप जैसी पाठक के होते, मैं स्वाम की रचना पर क्या कह सकता हूँ. अपने विचारों को शब्द देने का प्रयास किया है, आदरणीया, कोई त्रुटी हो तो अवगत कराएं!
सादर!
शब्द से शब्द पर चोट....!
गहन रचना।
निवेदन है आप स्वयं रचना के बारे में कुछ बताएं/कहें आदरणीय।
सादर
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