For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत/ नए साल की आहट पाकर

इन गुलाब की पंखुड़ियों पर

जमी

ओस की बुँदकी चमकी   

नए साल की आहट पाकर

उम्मीदों की बगिया महकी

 

रही ठिठुरती

सांकल गुपचुप

सर्द हवाओं के मौसम में

द्वार बँधी 

बछिया निरीह सी

रही काँपती घनी धुँध में

 

छुअन किरण की मिली सबेरे

तब मुँडेर पर चिड़िया चहकी

 

दर-दर भटक रही

पगडंडी

रेत-कणों में

राह ढूँढती

बरगद की

हर झुकी डाल भी

जाने किसकी

बाँट जोहती

 

एक उदासी ओढे थी जो

नदिया की वह धारा हुमकी

.

- बृजेश नीरज

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 4, 2014 at 8:26pm
आदरणीय सौरभ सर जी! के रचना विश्लेषण से अभिभूत हूँ।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 4, 2014 at 8:20pm
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी! सुन्दर कविता बिल्कुल मखमली।
Comment by vandana on January 3, 2014 at 5:24am

सांकल गुपचुप

सर्द हवाओं के मौसम में

द्वार बँधी 

बछिया निरीह सी

रही काँपती घनी धुँध में

 

छुअन किरण की मिली सबेरे

तब मुँडेर पर चिड़िया चहकी

और 

दर-दर भटक रही

पगडंडी

रेत-कणों में

राह ढूँढती......

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय बृजेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2014 at 2:26am

आपकी इस रचना से गुजरना मुझे भला लगा, भाई बृजेशजी. कुछ बिम्ब तो सीधे वातावरण से लिये गये है और सार्थक चित्र प्रस्तुत करते हैं. इसके लिए आपकी निरंतरता और गहन दृष्टि को हार्दिक धन्यवाद कह रहा हूँ. बहुत खूब !

लेकिन एक और तथ्य जो सबसे अधिक ध्यानाकृष्ट कर रहा है वह है आपका सायास तुकान्तता के साथ मनमानापन. और ये आप भी जानते हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ. इसीकारण मैं यह कह भी पा रहा हूँ. रचना पर अच्छी और मनभावन बातें आपसे नहीं करूँगा. अन्यथा, मेरे कहने का कोई अर्थ नहीं होगा.  कारण, उससे आपको न कोई लाभ होगा और न ही आप संतुष्ट होंगे, मुझे यह भी पता है.

इधर नवगीत के क्षेत्र से सम्बन्धित कई-कई पुरोधाओं और गणमान्यों से मेरी सार्थक बातचीत हुई है, फोन पर भी तथा सापेक्ष भी. सबके कहे से जो औसत निकल कर सामने आया है वह यही है कि हम विधा के मूलभूत तत्त्वों के साथ खिलवाड़ न करें, चाहे नवगीत की उन्मुक्तता और उसका अपेक्षित बोहेमियन व्यवहार हमें कितना ही क्यों न लुभाये. आदरणीय नचिकेताजी ने तो मेरी विधाजन्य बातों को इतनी दूर तक और इतना ठोस समर्थन दिया है कि फोन पर भी और पटना में उनके आवास पर भी हुई बातचीत में कई बार मैं उनकी ही बातों को कहता हुआ दिखने लगा. और, यह मेरे लिए भी सुखद आश्चर्य था. कहना न होगा, उनका भी यही कहना है कि गीत या कविताओं की मूलभूत अवधारणा से मनमानापन क्षणिक चमत्कार अवश्य पैदा कर दे, परन्तु, उसका कुल-प्रभाव आगे चल कर सदा उथला ही हुआ करता है.

आदरणीय गुलाब सिंहजी आदरणीय नचिकेता जी की तरह मुखर तो नहीं थे लेकिन अपने आवास पर अपने नवगीत-संग्रह ’बाँस-वन और बाँसुरी’ को मुझे सहर्ष देते समय और बाद में फोन पर भी यह अवश्य कहा कि कई जगह शिल्पगत विसंगतियाँ दिखेंगी, उसे देख लीजियेगा, आप अवश्य साझा कीजियेगा. बृजेशजी, मैं अवाक भी था और निश्शब्द भी ! एक वटवृक्ष मुझ लतिका से अपनी संवेदना ज़ाहिर कर रहा था !
लेकिन यह विधाओं के प्रति हम सभी का आग्रह ही है जो उन जैसे नवगीत के पुरोधा को इस तरह से नम्र कर रहा था. क्या गेय रचनाओं यानि गीतों या नवगीतों की मूलभूत अस्मिता को बचाना रचनाधर्म का आग्रह नहीं होना चाहिये ? अवश्य ही हाँ.

रचनाकर्म के क्रम में घनीभूत भाव विधाजन्य नहीं होते, अलबत्ता उन भावों का संप्रेषण अनुशासनबद्ध होता है. अर्थात किसी प्रस्तुतीकरण के कुछ वैधानिक लिहाज होते हैं. उसी कारण कोई विधा अन्य विशिष्ट विधा-भिज्ञों के बीच वैधानिक सम्मान पाती है.

यदि बीसवीं सदी के पचास के दशक से लगातार व्यवहृत होते चले जाने के बावज़ूद आजतक यह कहा जा रहा है कि नवगीत को हिन्दी पद्य-साहित्य में कोई सार्थक स्थान नहीं मिला है तो उसके कई मुख्य कारणों में से ये दो कारण सबसे प्रमुख प्रतीत होते हैं, एक, नवगीत के रचनाकारों द्वारा अपनी वैधानिक कमियों को अपने वाग्जाल के आवरण में छुपाना, दो, गीतों के मूलभूत विधानों के विरुद्ध अपनायी गयी अनावश्यक ज़िद को अपनी श्रेष्ठता की तरह लगातार घोषित करते रहना.

उन कतिपय रचनाकारों की ऐसी कोई ज़िद जितना शीघ्र समाप्त हो उतना ही अच्छा.

हम क्यों न अपनी ऊर्जा नवगीतों के अभिनव बिम्बों और सार्थक एवं स्पष्ट प्रस्तुतीकरण के लिए बचा रखें ! नवगीत तो गीतों के नियमों का पालन करते हुए, अभिनव बिम्बों के साथ  सरलता से लिखे जा सकते हैं यह अब दूर की कौड़ी नहीं है. कमसेकम ओबीओ पर तो नहीं ही है.
शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on December 30, 2013 at 6:23pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by annapurna bajpai on December 30, 2013 at 6:20pm

खूबसूरत नवगीत , सुंदर भावों सुंदर शिल्प के साथ गढ़ी गई आपकी रचना वाकई दिल को छु जाती है , बहुत बधाई आपको इस सुंदर रचना की प्रस्तुति हेतु । 

Comment by बृजेश नीरज on December 29, 2013 at 11:10pm

आदरणीय ब्रह्मचारी जी आपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार!

Comment by S. C. Brahmachari on December 29, 2013 at 9:56pm
आपकी रचना की प्रशंसा के लिए शब्द ढूंढ रहा हूँ ....... हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई ब्रजेश नीरज जी !
Comment by बृजेश नीरज on December 28, 2013 at 12:16pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 28, 2013 at 8:47am

बहुत सुंदर  मनमोहक रचना, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service