ज़िन्दगी तू मौत से पीछा छुड़ा न पाएगी।
उम्र बढ़ती जाएगी , करीब आती जाएगी।।
ज़िन्दगी सफर है और, मुक्ति है मंजि़ल तेरी।
मुक्ति जब करीब हो, तो मौत मुस्कराएगी।।
मौत एक माँ की तरह, फर्ज़ भी निभाएगी।
प्यार भरी थपकियों से, गोद में सुलाएगी।।
जब मधुर आवाज़ में, वो लोरी गुनगुनाएगी।
नींद गहरी और गहरी, और होती जाएगी।।
माँ को सबका ध्यान है, सभी पे मेहरबान है।
मुक्ति सारी झंझटों से, मौत ही दिलाएगी।।
भेद भाव करती नहीं, सब को चाहती है माँ।
जब समय आ जाएगा, बिना बुलाए आएगी।।
हर जनम में माँ , तू एक बार मिलती है।
स्वागत् है इस जनम में, तू कभी तो आएगी।।
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- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी (छत्तीसगढ़)
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
सुन्दर प्रयोग किया है आपने आदरणीया //////बहुत बहुत बधाई
आदरनीय बड़े भाई , अंतिम सत्य मौत ही है जानाने के बावज़ूद मन भयभीत रहता ही है , आपने माँ के रूप मे देख कर एक नई सोच दी है , शायद अब डर कम हो !!!! नई सोच के लिये बधाई !!! शिल्प भी सही नही तो, सही होने के क़रीब लगी मुझे !!!! बाक़ी गुणी जन बातायेंगे !!!!!
'मौत' की इतनी सुंदरतम अभिव्यक्ति.अखिलेश जी.मैंने बहुत कम पढ़े है.जो भी इस अटूट सत्य से दूर नहीं भागता मौत उस के लिये माँ ही है.बहुत सुंदर बार बार पढ़ने लायक कृति.
सादर
कुंती
आदरणीय बड़े भाई , अवश्यम्भावी मृत्यु की सत्यता के विषय में बहुत ही सही बात कही है आपने |" माँ जैसी प्यारी है मौत " कविता के लिए आपको बहुत बहुत बधाई | इसे पढ़ कर " अज़ीज़ नाज़ा " की गाई हुई मृत्यु के बारे में मशहूर कव्वाली " की याद आ गयी |
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