प्याज सब्जियाँ आलू दाल, किया हमें सब ने बेहाल।
खट्टी मीठी कड़वी यादें, देकर बीता पिछला साल॥
चारों तरफ से कर्जा उस पर, सभी फसल बर्बाद हुए।
आत्महत्या किसानों ने की, बात दुखद गंभीर सवाल॥
दस राज्य केंद्र में शासन है, पर बढ़ा मांस निर्यात।
चौंकाने वाली ये खबर है, गौ माता भी हुई हलाल॥
करोड़ों खर्च हुए संसद पर, काम के नाम पे ठेंगा है।
बस नारेबाजी बहिर्गमन, पुतलों का दहन, हड़ताल॥
आरोप और प्रत्यारोप हुए, मंत्री विधायक…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2016 at 7:37pm — 4 Comments
अजी सुनते हो ..... पप्पू के पापा ।
धीरे बोलो भागवान, पड़ोसी क्या सोचेंगे।
मैंने कहा छोटे बड़े मँझले साहित्यकारों और पुरस्कृत कुछ लोग लुगाइयों में सम्मान लौटाने की होड़ लगी है। इन सब के थोपड़े हर चैनल्स में बार बार दिखाया जा रहा है। आप भी अपना सम्मान लौटा दीजिये।
कौन सा सम्मान ?
ये लो, ऐसे पूछ रहे हो जैसे 10–20 पुरस्कार और सम्मान प्राप्त कर चुके हो और सिर्फ नोबेल पुरस्कार ही लेना बाकी है। अरे जीवन में एक ही बार तो सम्मानित…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 20, 2015 at 2:19pm — 9 Comments
आल्हा छंद
बरसों पहले बंधु बनाकर, चाउ -माउ चीनी मुस्काय।
और उसे हम बड़े प्यार से, भैया कहकर गले लगाय।।
हर आतंकी पाकिस्तानी, चाल चीन की समझ न आय ।
दो मुँह वाला अमरीका है, विकिलीक्स दुनिया को बताय।।
एक ओर है पाक समस्या , और कहीं चीनी घुस जाय ।
*राम -…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 1, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
अपने ही घर में दासी हिंदी
हिंदी धीरे- धीरे समृद्ध हुई और फली फूली है। संस्कृत के सरल शब्दों, क्षेत्रीय बोलियाँ / भाषाओं को लेकर आगे बढ़ी, पवित्र गंगा की तरह लगातार कठिनाईयों को पार करते हुए । उर्दू , अरबी, फारसी आदि भी छोटी नदियों की तरह इसमें शामिल होती गईं जिससे हिंदी और मधुर हो गई। आज हिंदी के पास विश्व की किसी भी भाषा से अधिक शब्द हैं। लेकिन आजादी के बाद से सरकार की नीति से हिंदी निरंतर उपेक्षित होती गई। हिंदी के शब्द कोष में…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 3, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
क्रिकेट की मंडी भारत है, जहाँ हर क्रिकेटर बिक जाय।
लग जाती है जिसकी बोली, खुश होकर “याहू” चिल्लाय।।
पशु जैसे नीलाम हो गये, धन के आगे सब मजबूर।
क्रेता इन सब का मालिक है, और सभी बँधुवा मजदूर॥
अच्छा है मौजूद नहीं थे, जहाँ हुए थे सब नीलाम।
ठोक बजाकर देखे जाते, नस्ल कौन सी, क्या है दाम।।
इज्ज़त से बढ़कर पैसा है, जो देता ऐश्वर्य तमाम।
खुश दिखते हैं बिकने वाले, नहीं बिके तो, नींद हराम॥
खेल अज़ब है…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 7:30pm — 12 Comments
चौपई छंद - प्रति चरण 15 मात्रायें चरणान्त गुरु-लघु
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ऋतु चुनाव की जब आ जाय। यहाँ वहाँ नेता टर्राय॥
सज्जन दिखते, मन में खोट। दांत निपोरें, माँगे वोट॥
जिसकी बन जाती सरकार। सेवा नहीं, करते व्यापार॥
नेता अफसर मालामाल। देश बेचने वाले दलाल॥
जब अपनी औकात दिखांय। बिना सींग दानव बन जांय॥
नख औ दांत तेज हो जाय। देश नोंचकर कच्चा खांय॥
है इनमें कुछ अच्छे लोग। न लोभी हैं, न कोई…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 1, 2014 at 1:00pm — 16 Comments
(1)
अंग्रेजियत का, दंभ भरते, क्या दिये संस्कार।
रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥
नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।
हैं बलात्कारी, आततायी, व्याप्त भ्रष्टाचार ॥
(2)
नेता लफंगे, संग चमचे, जब पधारे गाँव।
वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥
जीते अगर तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।
मंत्री बने तो, देश का फिर, करें…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 5, 2014 at 11:30am — 17 Comments
फिर आया मौसम चुनाव का, वोट की कीमत जानो।
पाँच बरस फिर अवसर दे दो, सेवक को पहचानो॥
लोकतंत्र मजबूत बनेगा, संशय मन में न पालो।
भई, वोट मुझे ही डालो। …
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 28, 2014 at 7:30pm — 11 Comments
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।
भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गुलाल लगाएंगे।।
काले धन वालों को काला, और सभी को सतरंगी।
पिचकारी की तेज धार से, बदन सभी का भिगाएंगे।।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 9, 2014 at 6:30pm — 15 Comments
मनुज रूप इंग्लैंड गये थे, वहाँ पहुँच “ डंकी ” कहलाय।
घुटने टेके, सिर भी झुकाय, गुलाम जैसा खेल दिखाय।
जब उपाधि डंकी की पाये, सब बेशर्मों सा मुस्काय।
वह रे क्रिकेटर हिन्दुस्तानी, अपनी इज़्ज़त खुद ही गवांय।
आस्ट्रेलिया में हाल खराब, सभी मैंच में हमें हराय।
अरबों रुपय कमाने वालों, दो कौड़ी का खेल दिखाय।
अफ्रीका में मैच भी हारे, उस पर हाथ पैर तुड़वाय।
खेल दिखाये बच्चों जैसा , रोते गाते वापस…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 3, 2014 at 12:00pm — 12 Comments
आदि बेटे, मैं बहू को लेकर अस्पताल जा रही हूँ साथ में रंजना (बेटी) और अदिति ( पोती) भी। तुम गुरूजी को लेकर वहीं आओ।
आइये गुरूजी, प्रणाम। पोती के जन्म के समय आपने पूरा समय दिया था इस बार भी.......।
ठीक है मैया, मिठाई खाकर ही जाऊँगा। बहू को आशीर्वाद देते हुए - चिंता मत करो बेटी श्रीराधेकृष्ण की कृपा से इस बार भी सब कुछ सामान्य और सुखद होगा। हर समय…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 14, 2014 at 12:00pm — 15 Comments
नई सुबह के स्वागत् में, हम वंदनवार लगायें।
रंग बिरंगे फूलों से, घर आंगन द्वार सजायें॥
नये वर्ष के अभिनंदन में, गीत नया हम गायें।
मंगल की सब करें कामना, मिलकर जश्न मनायें॥
फूल खिले हैं, बगिया महकी , हैं भँवरे मंडराये।
भ्रमर सरीखे हम भी झूमे , गुंजन करते जायें ॥
कुहू -कुहू जब कोयल कूके, चहुँदिश मस्ती छाये।
हम भी ऐसी बोली बोलें , मन सबका…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2014 at 12:30pm — 28 Comments
ज़िन्दगी तू मौत से पीछा छुड़ा न पाएगी।
उम्र बढ़ती जाएगी , करीब आती जाएगी।।
ज़िन्दगी सफर है और, मुक्ति है मंजि़ल…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 2, 2013 at 9:07am — 24 Comments
छोटे शहर में ब्याही गईं, कुछ महानगर की लड़कियाँ।
जींस टॉप लेकर आईं, ससुराल में अपनी लड़कियाँ।।
बहुयें सभी बन गई सहेली, मुलाकातें भी होती रहीं।
जींस-टॉप में पहुँच गईं, एक उत्सव में बहू बेटियाँ॥
सास - ससुर नाराज हुए, पति देव बहुत शर्मिंदा हुए।
भिखारियों को घर पे बुलाए, साथ थी उनकी बेटियाँ।।
बड़ी देर तक समझाये फिर, जींस पेंट और टॉप…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 10:30pm — 31 Comments
पीकर आया दीवाली में, बांह पकड़ बीबी से बोला।
तुम मधुमय अधरों वाली, और मैं प्यासा दरुवा भोला॥ ...... दरुवा = शराबी
बीबी बोली, शर्म करो , दीवाली में पीकर आये हो। ....... पत्नी…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 1, 2013 at 3:10pm — 10 Comments
बच्चन पूछे केबीसी में , रट लो शायद काम आए।
अमीरों की नई सूची बनेगी, शायद तेरा नाम आए॥
प्याज के संग जो रोटी खाये, गरीब नहीं कहलाएंगे।
तैंतीस रुपये कमाने वाले,…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 23, 2013 at 3:30pm — 15 Comments
सार्थक दशहरा
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धर्म की विजय हुई त्रेता में, राम ने मारा रावण को।
उसकी याद में हमने भी, हर साल जलाया रावण को॥
कलियुग में मायावी रावण, रूप बदलकर आता है।
वो भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, अनाचारी कहलाता है॥
अधर्मी रावण का पुतला, हर बरस जलाया जाता है।
कई रूप में अंदर बैठा रावण, हँसता है, मुस्काता है॥
अपने अंदर के रावण को ,…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments
बड़े साहब थे बड़े मूड में, भृत्य भेजकर मुझे बुलाये।
छुट्टी का दिन व्यर्थ न जाये, आओ इसे रंगीन बनायें॥
आज के दिन जो मिले नहीं, उस चीज का नाम बताये।
और बोले कहीं से जुगाड़ करो, फिर…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2013 at 12:30am — 13 Comments
1 / आजादी के बाद ही हमें हिंदी को राष्ट्रभाषा, सरकारी कामकाज व न्यायालय की भाषा अनिवार्य रुप से घोषित कर देनी थी, पर अंग्रेज एवं भारत के अंग्रेजी पूजकों के बीच हुए समझौते ने और उसके बाद सत्ता पर बैठे अंग्रेजी समर्थकों ने भारत की आजादी को गुलामी का एक नया रुप दे दिया। “ तन से आजाद पर मन से गुलाम भारत का " और उसी दिन से शुरू हो गई भारत को धीरे - धीरे इंडिया बनाने की साजिश।
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2 / आजादी के बाद सत्ता के चेहरे तो बदल गये पर चरित्र नहीं बदले। अंग्रेजों ने उन्हें पूरी तरह…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 14, 2013 at 7:00pm — 16 Comments
गणेशोत्सव- हे विघ्न विनाशक
अनाचार है, अत्याचार है, गणपति इसका निदान करें।
कुछ न सूझे तो हे बप्पा , मेरे कथन पे विचार करें॥
विघ्न डालें उनके कार्य में, जो हैं देश के भ्रष्टाचारी ।
लेकिन उन्हें निराश न करना, द्वार जो आए सदाचारी॥
नवरात्रि
न फूहड़ वस्त्र न बेशर्मी, सब कुछ शुभ हो त्योहारों में।
गरबा हो या नृत्य कोई , तन हो पवित्र त्योहारों में॥
खेल नहीं है माँ की पूजा, विधि विधान…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 8, 2013 at 1:30pm — 4 Comments
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