फिर आया मौसम चुनाव का, वोट की कीमत जानो।
पाँच बरस फिर अवसर दे दो, सेवक को पहचानो॥
लोकतंत्र मजबूत बनेगा, संशय मन में न पालो।
भई, वोट मुझे ही डालो।
वोट माँगने दर पर आया, सबसे बड़ा भिखारी हूँ।
जनता हैं भगवान हमारे, मैं छोटा सा पुजारी हूँ ॥
चाहे मुझ से प्यार करो तुम, चाहे मुझे दुत्कारो।
पर वोट मुझे ही डालो।
पाँच बरस तक आया नहीं, चेहरा मैं अपना दिखाया नहीं।
यह भी सच है प्यारी जनता, दिल से तुम्हें भुलाया नहीं॥
जितनी गाली याद आती है, सब मुझको दे डालो।
पर वोट मुझे ही डालो।
तुम ने मुझको नेता समझा, ये तेरी नादानी है।
मैं जनता का सेवक हूँ ,बस इतनी मेरी कहानी है॥
चुप न रहो, डर लगता है, जो कहना है कह डालो।
पर वोट मुझे ही डालो।
वोट माँगने आये विरोधी, बातों से बहला देना।
वोट के बदले नोट दिखाये, ना ना करते ले लेना॥
साइकिल साड़ी कम्बल से, तुम अपना घर भर डालो।
पर वोट मुझे ही डालो।
स्वास्थ्य, किसानी, शिक्षा, पानी, सभी क्षेत्र में काम किया।
फिर भी विरोधी दल ने मुझको, बेमतलब बदनाम किया॥
बात मेरी यदि झूठ लगे तो, कसम तुम अपनी खिला लो।
पर वोट मुझे ही डालो।
जूते, चप्पल, लाठी मारो, कहो तो मुर्गा बन जाऊँ।
एक बार तो हाँ कह दो, फिर मैं भी आगे बढ़ जाऊँ॥
जितनी गाली बची है दे दो, दोनों कान पकड़ा लो।
पर वोट मुझे ही डालो।
“ गिरगिट” चुनाव चिन्ह है मेरा, रंग बदलता जाता है।
बटन जहाँ पे दबाओगे, वहाँ काला रंग ही आता है॥
काम तुम्हारा पूरा होगा, कुछ ना देखो भालो।
बस वोट मुझे ही डालो।
प्रणाम करूं हर वोटर को, सब वोट मुझे मिल जाएगा।
है चुनाव जनता की अदालत, न्याय मुझे मिल जाएगा॥
एक बार फिर बटन दबाओ, बात मेरी न टालो।
भई, वोट मुझे ही डालो।
चुनावी भँवर से निकालो।
मेरी नैया पार लगा दो।
भई, वोट मुझे ही डालो।
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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
विवेकानंदनगर धमतरी ( छत्तीसगढ़ )
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अखिलेशजी, आपकी इस प्रस्तुति को नवगीत का रूप आसानी से मिलता दिख रहा है और आधारभूत बिम्ब के लिए सार छंद लिया जा सकता है. १६-१२ की यति पर.
सादर
आदरणीय सौरभ भाईजी,
किस विधा में बाँधू कुछ सूझ ही नहीं रहा था उस पर रचना भी लम्बी हो गई थी। यही कारण है कई दिनों तक रचना पडी रही। अंततः सामयिकता का ध्यान रकते हुए मजबूरी में पोस्ट किया।
एक अनुरोध -- इसी भाव को लेकर ऐसी रचना किस छंद या विधा में सरलता से बाँधी जा सकती है कृपया बतलायें मैं अपनी संतुष्टि के लिए ही सही प्रयास अवश्य करूँगा ।
....सादर
सामयिक रचना को समय देने और पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
इस समसामयिक रचनाके लिए बधाई आदरणीय.
वैसे ऐसी रचनाओं में भी शिल्प के प्रति आग्रही होना उचित होता है. क्यों कि ये अपने कथ्य के कारण अधिक लोकप्रिय हो जाती हैं. ऐसे में रचनाकार के ऊपर दायित्व अधिक होता है.
सादर
छोटे भाई गिरिराज इस लम्बी सामयिक रचना को समय देने और पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
आदरणीय जितेन्द्र भाई इस लम्बी सामयिक रचना को समय देने और पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
आदरणीय बड़े भाई , बहुत सुन्दर , सामयिक , और जागरूकता लाती रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
बहुत सुंदर, चुनावी माहौल पर करारा व्यंग . बधाई आदरणीय अखिलेश जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई इस लम्बी सामयिक रचना को समय देने और पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
आदरणीय आशुतोष भाई इस लम्बी सामयिक रचना को समय देने और पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
क्जिनावी मौसम के लक्ष्य कर लिखी सुन्दर व्यंग रचना के लिए बधाई श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
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