(1)
अंग्रेजियत का, दंभ भरते, क्या दिये संस्कार।
रावण बनें कुछ, कंस भी हैं, पूतना भरमार ॥
नारी सुरक्षा, देश रक्षा, विफल है सरकार।
हैं बलात्कारी, आततायी, व्याप्त भ्रष्टाचार ॥
(2)
नेता लफंगे, संग चमचे, जब पधारे गाँव।
वो गिड़गिड़ायें, वोट माँगें, पकड़ सब के पाँव॥
जीते अगर तो, भूल से भी, दिखें न बदमाश।
मंत्री बने तो, देश का फिर, करें सत्यानाश॥
*संशोधित
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(मौलिक व अप्रकाशित)
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
धमतरी (छत्तीसगढ़),
Comment
आदरणीय विजय भाई
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
आ० अखिलेश श्रीवास्तव जी,
//एक बात और ... दंभ भरते के स्थान पर ......... " रंग जिन पर " लिखें तो क्या और भी बेहतर होगा ? //
रंग जिन पर, यदि करते हैं तो व्याकरणिक रूप से पंक्ति अशुद्ध हो जाएगी
ज़रा देखिये .... //अंग्रेजियत का , रंग जिन पर, क्या दिए संस्कार// ...................इस पंक्ति में तो दिए सही नहीं लगेगा या तो फिर 'क्या वो दें संस्कार' ऐसा कुछ होना चाहिए
दूसरी बात ...
अपनी ब्लॉग पोस्ट को तो रचनाकार ऑप्शन में जाकर स्वयं ही एडिट कर सकते हैं....बस रचना उसके बाद अप्रूवल में चली जाती है. बहराल...अब तो आपकी रचना संशोधित हो ही चुकी है.
सादर.
आदरणीया कुंती जी,
सच कहती हैं भुगतना हर हाल में आम जनता को है, तरबूज तो वही है। नेताओं का कुछ बिगड़ता नहीं।
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
आदरणीय जितेन्द्र भाई
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार , सब कुछ ओबीओ से ही सीख रहा हूँ ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई
रचना की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद , आभार
आदरणीया प्राचीजी,
एडमिन महोदय से संशोधन हेतु अनुरोध के 24 घंटे बीत गये , शायद उस कक्ष में फिलहाल कोई नहीं है।
एक बात और ... दंभ भरते के स्थान पर ......... " रंग जिन पर " लिखें तो क्या और भी बेहतर होगा ? अगर ऐसा है तो वह भी कर दीजिए ।
बहुत सुंदर ,हर एक विधा में आपकी रचनाओं का अंदाज, निराला होता है आदरणीय अखिलेश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
सुन्दर और सामयिक छंद रचना पस्तुति के लिए हार्दिक बधाई श्री अखेलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी
आदरणीय बड़े भाई , बहुत सुन्दर कामरूप छंद रचना की है आपने , सुधार के बाद रचना और सुन्दर लगेगी !! आपको बधाइयाँ ॥
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