चौपई छंद - प्रति चरण 15 मात्रायें चरणान्त गुरु-लघु
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ऋतु चुनाव की जब आ जाय। यहाँ वहाँ नेता टर्राय॥
सज्जन दिखते, मन में खोट। दांत निपोरें, माँगे वोट॥
जिसकी बन जाती सरकार। सेवा नहीं, करते व्यापार॥
नेता अफसर मालामाल। देश बेचने वाले दलाल॥
जब अपनी औकात दिखांय। बिना सींग दानव बन जांय॥
नख औ दांत तेज हो जाय। देश नोंचकर कच्चा खांय॥
है इनमें कुछ अच्छे लोग। न लोभी हैं, न कोई रोग़॥
सोचें समझें, तब दें वोट। बार - बार ना खायें चोट॥
झूठे नारे, गलत बयान। लाख समस्या एक निदान॥
बदलें “मत” से हिंन्दुस्तान। फिर होगा यह देश महान॥
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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
इस सामयिक छंद पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
आदरणीय अरुण भाईजी,
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
छंद लिखा जो मन को भाय। खुशी और दूनी हो जाय॥
आप सभी से सीखा भ्रात। वरना अपनी क्या औकात॥
छोटे भाई गिरिराज्,
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
आदरणीय अशोक भाईजी,
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
सही कह रहे हैं आप एक ही चौपई में दो गलतियाँ हो गई, आपकी और सौरभ भाई की चौपई ध्यान से पढ़ने के बाद भी।
आदरणीया राजेश कुमारीजी,
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
सँभलकर कदम रखने के बाद भी ठोकर लग ही जाती है ( मात्रा गिनने में गलती हो ही जाती है)
पहले लिखा था..
भ्रष्ट व्यवस्था, गंदी चाल। नेता अफसर मालामाल।
बदलने से त्रुटि भी हो गई और वो भाव भी नहीं बन पाया जो ऊपर के वाक्य में है
सादर
आदरणीया सरिता जी,
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
आदरणीया कुंतीजी,
रचना की प्रशंसा केलिए हार्दिक धन्यवाद आभार
बहुत बढ़िया चौपाई आदरणीय अखिलेश जी, हार्दिक बधाई आपको
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